Sanjay Jayswal' s poems on Gandhi

 

Visit of Dr.Sanjay Jayswal 


Dr. Sanjay Kumar Jayswal,Faculty Member, Department of Hindi  Vidyasagar University Midnapore ,West Bengal visited the Library and Research Centre for Gandhian Studies of Sevagram Ashram Pratishthan on 25 February 2025.Dr.Siby K Joseph, Director of the Centre welcomed  him and the accompanying team briefed  them about the activities of the Centre.On the ocassion of visit he recited two poems written on Gandhian  themes. 



चरखा और तिरंगा 

बचपन के पहले पाठ से

अबतक नहीं भुल पाया मैं

चरखा और तिरंगा

तब

दोनों का अर्थ 

ठीक-ठीक नहीं पता था मुझे

धीरे -धीरे पंद्रह अगस्त

और छब्बीस जनवरी 

मेरे लिए बनते गए

चरखा और तिरंगा

उन दिनों कितने प्यारे थे

हमारे सत्य,अहिंसा 

और प्रेम के पुजारी


कितना अजीब है यह

कि आज 

सत्य की खोज और 

सत्य के प्रयोग की आवाज़

झूठ के सामने

 है लाचार 

झूठ हमारे समय का

सबसे बड़ा सच बन

विस्थापित कर रहा  खादी,सद्भावना और सुराज को

भय,घृणा और गरीबी के इस दौर में

झूठ धर्मरक्षक बन

नफरत और समृद्धि की चादर ओढ़

महात्मा और राष्ट्रपिता की 

नई छवि गढ़ रहा है

दरअसल

नई छवि का यह नया सौंदर्यशास्त्र

सिंहों की खूंखार दहाड़

और गोडसे के नायकत्व में 

खूब रहा है चमक

और

इन दिनों 

चरखा,तिरंगा और सुराज के गायक

बना दिए गए हैं

लाठी का टेक ले चलनेवाले

चरित्रहीन, लिजलिजे, कमजोर नायक

इनदिनों वे

देश बंटवारे के गुनहगार की तरह

नये इतिहास में शामिल किये जा रहे हैं

दरअसल

नया इतिहास 

ज्यादा चमकदार 

सत्ता और बाजार धर्मी है

और

उसकी चमक में

खो रहा है सत्य,खादी और तिरंगा......

संजय जायसवाल

"मैं अब भी जिंदा हूं"


'मैं

गांधी बोल रहा हूं

मुझे 

नहीं मिली है मुक्ति

आज भी

 मैं कैद हूं नोटों पर


टांग दिया गया है मुझे 

सरकारी दफ्तरों की चमकदार सलीबों पर


चौराहे पर चुपचाप खड़ा मैं

सब देख रहा हूं


देख रहा हूं

हवा में लहराते तिरंगे को

देख रहा हूं

अपने  ही साथियों का नरमुंड पहने किसानों को

मैं देख रहा हूं

नेताओं के आश्वासनों से

 गदगद जनता को

देख रहा हूं

आत्मनिर्भरता के फ्रेम में

ठोके गए 

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापन


सच 

किसी गोडसे ने मुझे नहीं मारा

यकीन मानिए

अपनों के रहते

मुझे नहीं मार सकता

 कोई गोडसे

मैं

अब भी जिंदा हूं


देखिए

सुराज की चिता

अब भी जल रही है यहां

और 

मेरे चंपारण के साथी 

सड़क किनारे 

अब भी

जोह रहे हैं मेरा बाट

क्योंकि

सिर्फ़ उन्हें भरोसा है

मेरे लौटने की


अब मुझे मुक्त करो 

नोटों की कैद से

राजनेताओं के मुखौटों से

उतार दो मुझे सलीबों से


दरअसल

मुझे बुझानी है 

आग

पेट और नफरत की


सच

 मुझे किसी गोडसे ने नहीं मारा

मैं अब भी जिंदा हूं



-संजय जायसवाल




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