Sarva Dharma Prarthana
Winter Camp/Short Term Course on Gandhian Thought for
College/University Students
December 26-30 , 2024
Morning Prayer
Venue : Library and Research Centre , Sevagram Ashram Pratishthan, Wardha
सर्व धर्म प्रार्थना
बौद्ध:-
बौद्धम् शरणं गच्छामि ।
संघम् शरणं गच्छामि ।
धम्मम् शरणं गच्छामि ।।
वैदिक:-
हरिः ॐ
ईशावास्यं इदं सर्वं यत् किं च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुंजीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।।
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यै स्तवैः वेदैः सांगपदक्रमोपनिषदः गायन्ति यं सामगाः ।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ।।
इस्लाम:-
कुरान से प्रार्थना, पनाह अऊजु बिल्लाहि मिनश्शैता निर्रजीम बिस्मिल्ला हिर्रहमा निरहीम ।।
अलाहम्दु, लिल्लाहि राब्बिल आलमीन, अर रहमानिर रहिम, मालिकी यौमिद्दीन ।।
ईय्या कनअबुदु व ईय्या कनस्तईन, इहदिनस् सिरातलू मुस्तकींम । सिरातल् लजीन अन अम्त अलैहिम, गैरिल मगदूबि, अलैहिम वलद दूआल्लीन ।।
आमीन ! बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम, कुलहु अल्लाहु अहद अल्लाहुस्समद् । लम यलिद वलम युलद् लम य कुल्लहू कुफवन अहद् ।।
पारसी:-
जरथोस्ती गाथा मजदा अत माई वहिश्ता सवा ओस्वा श्योधनाचा बओचा ता-तू वहू मनंघहा अशाचा इषुदेम स्तुतो, क्षमा का श्रवा अहूरा फेरषेम वस्ना इह श्येम दाओ अहूम ।।
यहूदी:-
श्मा इज़राइल, अदोनाय एलोहिनो, अदोनाय एखाद ।।
ईसाई:-
अवार फादर हू आर्ट इन हेवन हॅलोड बी दाय नेम दाय किंग्डम कम, दाय विल बी हुन ऑन अर्थ, अॅज इट इज इन हेवन गीव अस दिस डे, अवर डेली ब्रेड अँड फरगिव अवर ट्रेसपासेस
अज वी फिरगिव दोज, हू ट्रेसपास अगेंस्ट अस अँड लीड अस नॉट इनटू टेम्पटेशन बट डिलीवर अस फ्रॉम इवील फॉर दाइन इज द किंग्डम अँड द पॉवर अंड द ग्लोरी फॉर एवर अँड एवर ।। आमेन
सिक्ख:-
एक ओंकार सतनाम करता पुरुख निरभव निरवैर अकाल मूरत अजूनी सेभ गुरु प्रसाद जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक, हो सी भी सच ।।
जैन:-
नमो अरिहंताणम् नमो सिद्धाणम् नमो आयरियाणम् नमो उवज्झायाणम्
नमो लोए सन्व साहूणां ऐप्सो पंच नमुकारो, सन्व पावप्पणासणो मंगलाणंच सव्वेर्सि पढमं हवइ मंगलम् ।।
-:सर्व धर्म प्रार्थना (अनुवाद):-
वेदिक:-
ले जा असत्य से सत्य के प्रति ले जा तमस् से ज्योति के प्रति मृत्यु से ले जा अमृत के प्रति चलें साथ और बोलें साथ दिल से हिल-मिल जियें साथ अच्छे कर्म करें हम साथ बैठ के साथ भजें हम नाथ हो संकल्प समान-समान हो जन-जन के हृदय समान सबके मन में भाव समान निश्चय सम हो कार्य समान
ताओ:-
सद्व्यवहार करें जो मुझसे उनसे सद्व्यवहार करूं दुर्व्यवहार करें उनसे भी मैं तो सद्व्यवहार करूं दुर्जन को सज्जन करने का सदाचार उपचार है
द्वेष क्रोध को पिघलाने का सही तरीका प्यार है
जैन:-
क्षमा मैं चाहता सबसे मैं भी सबको करूं क्षमा मैत्री मेरी सभी से हो किसी से वैर हो नहीं
बौद्ध:-
जीतो अक्रोध से क्रोध साधुत्व से असाधु को कंजूसी दान से जीतो सत्य से झूठवाद को
वैर से न कदापि भी मिटते वैर हैं कहीं मैत्री ही से मिटे वैर यही धर्म सनातन
इस्लाम:-
दयावान को करूँ प्रणाम कृपावान को करूँ प्रणाम विश्व सकल का मालिक तू अन्तिम दिन का चालक तू तेरी भक्ति करू सदा तेरी मान्यता करू सदा दिखा हमें तू सीधी राह जिन पर तेरी रहम निगाह ऐसों की जो सीधी राह दिखा हमें वह सीधी राह जिन पर करता है तू क्रोध भ्रमित हुए या है गुमराह उनके पथ का तूं नहीं नाम दयावान को करूँ प्रणाम
सिक्ख:-
नाम जपो कीरत करो बाँट के खाओ बन्दे सत्य वहाँ पे जानिए जहाँ हृदय सच्चा होए मनका मैल उतारे और तन अच्छा धोए
सत्य वहाँ पे जानिए जहाँ हो सत्य से प्यार नाम सुन स्थिर रहे मन वही मोक्ष का द्वार सत्य वहाँ पे जानिए जहाँ सीख अच्छी होए
दया करके जीव की कुछ दान धर्म कर देय सत्य सब की औषधी लेते पाप निकाल नानक कहे सत्य धरे पावे सत श्री अकाल
पारसी:-
हे प्रभो, तू उत्तमोत्तम धर्म संदेशा सुना ताकि नेकी राह चल मैं तेरी महिमा गा सकूँ चाहता है जिस मुताबिक उस मुताबिक तू चला
जिन्दगी की ताज़गी के स्वर्ग सुख को पा सकूँ
यहूदी:-
धन्य प्रभु है नाम तिहारा नित्य निरंतर साँझ सवेरा सारे जग से है तू अपार
स्वर्ग से कीर्ति तेरी गुरुतर स्वर्ग मर्त्य में कोई न तुझसा सिंहासन पर आरूढ जैसा • बैठा यद्यपि इतने ऊँचे देख रहे करुणा से नीचे
ईसाई:-
शान्ति का वाद्य बना तू मुझे प्रभु शान्ति का वाद्य बना तू मुझे
हो तिरस्कार वहाँ करूं स्नेह हो हमला तो क्षमा करूं मैं हो जहाँ भेद, अभेद करू हो जहाँ भूल, मैं सत्य करूं
हो संदेह वहाँ विश्वास घोर निराशा वहाँ करू आश हो अंधियारा, वहाँ पे प्रकाश हो जहाँ दुःख उसे करूं हास शान्ति का वाद्य बना तू मुझे प्रभु शान्ति का बाद्य बना तू मुझे
(अनुवादक नारायण देसाई))
-:नाम-माला:-
ॐ तत् सत् श्री नारायण तू पुरुषोत्तम गुरु तू सिद्ध बुद्ध तू स्कंद विनायक सविता पावक तू ब्रह्म मज्द तू यह शक्ति तू ईशु-पिता प्रभु तू रुद्र विष्णु तू राम कृष्ण तू रहीम ताओ तू । बासुदेव गो-विश्वरूप तू चिदानंद हरि तू अद्वितीय तू अकाल निर्भय आत्मलिंग शिव तू ।
-:एकादश-व्रत:-
अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य असंग्रह शरीर-श्रम अस्वाद सर्वत्र भयवर्जन सर्वधर्मी समानत्व स्वदेशी स्पर्श-भावना विनम्र व्रतनिष्ठा से ये एकादश सेव्य हैं।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
Evening Prayer
Venue :Open Prayer Ground
Sevagram Ashram
सेवाग्राम आश्रम
सायं-प्रार्थना
बौद्ध प्रार्थना
नम् म्योहो रेंगे क्यो । नम् म्योहो रेंगे क्यो । नम् म्योहो रेंगे क्यो ।
(जपानी भाषामें)
दो मिनटकी शांति
हरिः ॐ, ईशावास्यमिदं सर्वं, यत् किंच जगत्यां जगत् तेन त्यक्तेन भुंजीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्र मरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यै स्तवैर् वेदैः सांग-पद-क्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः ध्यानावस्थित-तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥
स्थितप्रज्ञके लक्षण:-
अर्जुन उवाच :
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। स्थितधीः किं प्रभाषेत किम् आसीत व्रजेत किम् ॥1 ॥
श्रीभगवान् उवाच :
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ! मनोगतान् । आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस् तदोच्यते ॥2॥
दुखेष्वनुद्विग्न-मनाः सुखेषु विगत स्पृहः । वीत-राग-भय-क्रोधः स्थितधीर् मुनिर् उच्यते ॥3॥
यः सर्वत्रानभिस्नेहस् तत् तत् प्राप्य शुभाशुभम् । नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥4॥
यदा संहरते चायं कूर्मोऽगानीव सर्वशः । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस् तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥5॥
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । रसवर्ज रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥6॥
यततो ह्यपि कौन्तेय ! पुरुषस्य विपश्चितः । इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥7॥
तानि सवाणि सयम्य युक्त आसात मत्परः । वशे हि यस्येंद्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठितर ॥४॥
ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस् तेषूपजायते । संगात् संजायते कामः कामात् क्रोधोऽभिजायते ॥9॥
क्रोधात् भवति संमोहः संमोहात् स्मृति-विभ्रमः । स्मृति-भ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥10॥
राग-द्वेष-वियुक्तैस्तु विषयान् इंद्रियैश् चरन् । आत्मवश्यैर् विधेयात्मा प्रसादम् अधिगच्छति ॥11॥
प्रसादे सर्व-दुःखानाम् हानिर् अस्योपजायते ॥ प्रसन्न-चेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥12॥
नास्ति बुद्धिर् अयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना । न चाभावयतः शांतिर् अशान्तस्य कुतः सुखम् ॥13॥
इंद्रियाणां हि चरताम् यन्मनोऽनुविधीयते । तद् अस्य हरति प्रज्ञाम् वायुर् नावम् इवाम्भसि ॥14॥
तस्माद् यस्य महाबाहो ! निगृहीतानि सर्वशः । इंद्रियाणींद्रियार्थेभ्यस् तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥15॥
या निशा सर्व-भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥16॥
आपूर्यमाणम् अचल-प्रतिष्ठं समुद्रम् आपः प्रविशन्ति यद्वत् । तद्वत् कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिम् आप्नोति, न कामकामी ॥17॥
विहाय कामान् यः सर्वान् पुमांश् चरति निःस्पृहः । निर्ममो निरहंकारः सः शांतिम् अधिगच्छति ॥18॥
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ ! नैनां प्राप्य विमुह्यति । स्थित्वाऽस्याम् अन्तकालेऽपि ब्रह्म-निर्वाणम् ऋच्छति ॥19॥
(गीता, 2.54-72)
एकादश व्रत
अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीर-श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भयवर्जन, सर्व-धर्मी समानत्त्व, स्वदेशी स्पर्श-भावना, हीं एकादश सेवावीं नम्रत्वें व्रत निश्चयें
इस्लाम धर्मकी प्रार्थना
(पनाह)
अञ्जु बिल्लाहि मिन्श्रौता निग्रजीम् ।
(अल् फातेहा)
बिसमिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम । अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल्आलमीन । अर्रहमानिर् रहीम, मालिकि यौमिद् द्दीन । इय्याक नअबुदु व इय्याक नस्तईन् । इहदिनस् सिरातल् मुस्तकीम । सिरातल् लजीन अन् अम्त अलैहिम; गैरिल् मगदूबि अलैहिम् वलदुआल्लीन । (आमीन)
(सूरत-इ-अिखलास)
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम । कुल हुवल्लाहु अहद् । अल्लाहुस्समद् लम् यलिद, वलम् यूलद; लम् यकुल्लहू कुफवन् अहद् ।।
पारसी धर्मकी प्रार्थना
मजदा अत्म मोइ वहिश्ता स्त्रवा ओस्बा श्योथनाचा वओंचा ता-तू वहू मनंधहा अशाचा इषुदेम स्तुतो क्षमा का श्रथा, अहुरा फेरषेम् वस्ना हइ श्येम् दाओ अहूम् ।।
ईसाई धर्मकी प्रार्थना
अवर फादर ! हू आर्ट इन हेव्हन, हलोड बी दाय नेम; दाय किंग्डम कम । दाऽय विल बी डन ऑन अर्थ अॅज इट इज इन हेव्हन : गिव्ह अस धिस डे अवर डेली ब्रेड अँड फरगिव अस अवर ट्रेसपासीस अॅझ वुई फरगिव्ह देम हू ट्रेसपास अगेन्स्ट अस। एंड लीड अस नॉट इन्टू टेम्प्टेशन, बट डिलीव्हर अस फ्रॉम इविल, फॉर दाईन इज दी किंग्डम, दी पॉवर अँड दी ग्लोरी फॉर एवर एण्ड एव्हर। (आमीन)
शिक्ख प्रार्थना:-
1 ओंकार सतिनामु करता पुरखु निरभउ । निरवैरु अकालमूरति, अजूनी सैभं गुरुप्रसादि।जपु
आदिं सचु, जुगादि सचु । है भी सचु, नानक होसी भी सचु ।
जैन प्रार्थना:-
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं ॥
ऐसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणा सणो । मंगलाणंच सव्वेसिं पढमं हवई मंगलम् ॥
(एक भजन और उसके बाद धुन। अंतमें दस मिनट सद्ग्रंथ का वाचन।)।
।।भजन।।
(रागः बागेश्री तीन ताल)
सब दिन होत न एक समान। एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह, संपति मेरु समान। एक दिन जाय स्वपच गृह सेवत, अंबर हरत मसान ॥१॥
एक दिन दूलह बनत बराती, चहुँ दिसी गढ़त निसान। एक दिन डेरा होत जंगल में, कर सूँघे पगतान ॥ २ ॥
एक दिन सीता रुदन करत है, महा विपिन उद्यान । एक दिन रामचन्द्र मिलि दोऊ, बिचरत पुष्प विमान ॥ ३॥
एक दिन राजा राज जुधिष्ठिर, अनुचर श्री भगवान। एक दिन द्रौपदि नगन होत है, चीर दुसासन तान ॥ ४ ॥
प्रगटत है पूरब की करनी, तज मन सोच अजान। सूरदास गुन कहँ लगि बरनों, बिधि के अंक प्रमान ॥ ५॥
(रागः दरबारी कानड़ा- तीन ताल)
घूँघट का पट खोल रे! तोको पीव मिलेंगे।
घट घट में वह साँई रमता कटुक वचन मत बोल रे॥
धन-जोबन को गरब न कीजै झूठा पचरंग चोल रे।
सुन्न महल में दियना बारिले आसनसों मत डोल रे॥
जाग जुगतसों रंग-महल में पिय पायो अनमोल रे।
कहै कबीर आनन्द भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥
(रागः कालिंगड़ा- तीन ताल)
मन लागो मेरो यार फकीरी में जो सुख पायो राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में ॥१॥
भला बुरा सबका सुनि लीजै कर गुजरान ग़रीबी में ॥ २॥
प्रेम-नगर में रहनि हमारी भलि बनि आई सबूरी में ॥ ३॥
हाथ में कुँडी, बगल में सोटा चारों दिसि जागीरी में ॥ ४ ॥
आखिर यह तन खाक मिलेगा कहा फिरत मगरूरी में? ॥ ५॥
कहत कबीर सुनो भाई साधो साहिब मिलै सबूरी में ॥ ६॥
(राग: बिहाग - तीन ताल)
नाम जपन क्यों छोड़ दिया?॥
क्रोध न छोड़ा, झूठ न छोड़ा, सत्यवचन क्यों छोड़ दिया ? ॥
झूठे जग में दिल ललचा कर असल वतन क्यों छोड़ दिया?
कौड़ी को तो खूब सम्हाला लाल रतन क्यों छोड़ दिया ? ॥ १॥
जिहि सुमिरन ते अति सुख पावे सो सुमिरन क्यों छोड़ दिया?
खालस इक भगवान भरोसे
तन, मन, धन क्यों न छोड़ दिया ? ॥
(राग: केदार- तीन ताल)
राम कहो, रहमान कहो कोऊ, कान्ह कहो, महादेव री पारसनाथ कहो, कोऊ ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री
भाजन-भेद कहावत नाना, एक मृत्ति का रूप री तैसे खंड कल्पनारोपित, आप अखंड सरूप री ।।
निजपद रमे राम सो कहिये, रहिम करे रहिमान री कर्षे करम कान्ह सो कहिये, महादेव निर्वाण री ॥
परसे रूप पारस सो कहिये, ब्रह्म चिन्हे सो ब्रह्म री इह विधि साधो आप आनन्दघन,चेतनमय निकर्म री ॥
(गजल)
अगर है शौक़ मिलने का,तो हरदम लौ लगाता जा।
जलाकर खुदनुमाई को,भसम तन पर लगाता जा॥
पकड़कर इश्क की झाडू,सफ़ा कर हिस्र-ए दिल को।
दुई की धूल को लेकर, मुसल्ले पर उड़ाता जा॥
मुसल्ला छोड़,तसबी तोड़, किताबें डाल पानी में।
पकड़ दस्त तू फ़रिश्तों का, गुलाम उनका कहाता जा॥
न मर भूखा, न रख रोज़ा, न जा मस्जिद, न कर सिजदा। वजू का तोड़ दे कूज़ा, शराबे-शौक़ पीता जा॥
हमेशा खा, हमेशा पी, न ग़फ़लत से रहो इकदम। नशे में सैर कर अपनी, खुदी को तू जलाता जा।।
न हो मुल्ला, न हो बम्मन, दुई की छोड़कर पूजा। हुक्म है शाह कलंदर का, 'अनलहक़' तू कहाता जा ॥
कहे मंसूर मस्ताना, हक़ मैंने दिल में पहचाना। वही मस्तों का मयखाना,उसीके बीच आता जा।।
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