Gandhi Bhajans of Rashtra Sant Tukdoji Maharaj ( Hindi )

 








तेरे नाम अनेक, तू एकही है।

(तर्ज मेरे दिल में गुरुने जादु किया...)


हर देशमें तू, हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एकही है।

तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, सब खेलमें, मेलमें तूही तो है ।। टेक ॥। सागर से उठा बादल बनके, बादल से फटा जल हो करके । फिर नहर बना नदियाँ गहरी,

तेरे भिन्न प्रकार, तू एकही है ।। १॥

चीटीसेभी अणु-परमाणु बना, सब जीव जगत्‌का रूप लिया ।

कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल बना,

सौंदर्य तेरा, तू एकही है ॥२॥

यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया । तुकड्या कहे कोई न और दिखा,

बस! मैं और तू सब एकही है ।। ३॥

 राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज


सबके लिये खुला है,

मंदीर यह हमारा ।

(तर्ज: ऊँचा मकान तेरा...)


सबके लिये खुला है, मंदीर यह हमारा । मतभेद को भूला है, मंदीर यह हमारा ॥ टेक ॥। आओ कोई भी पंथी, आओ कोई भी धर्मी । देशी विदेशियोंको, मंदीर यह हमारा||१||

मैदान पट बिछाया, डाला है एक आसन । सब देवता समाता, मंदीर यह हमारा||२||

संतोकी ऊँच बानी, पढते है मन्त्र जिसमें । सबका आवाज लेता, मंदीर यह हमारा||३||

मानवका धर्म क्या है, मिलती है राह जीसमें । चाहता भला सभीका, मंदीर यह हमारा||४||

है विश्वयोग इसका, विश्वात्म देव इसका । है शिस्त का रंगीला, मंदीर यह हमारा||५||

आओ सभी मिलेंगे, समुदाय प्रार्थना में । तुकड्या कहे अमर है, मंदीर यह हमारा|६||

 राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज






1.नहि गांधी का राज,आजका नहि गांधी का राज

(तर्ज : प्रभु मेरी नाथ किनारे...)

 

नहि गांधी का राज,आजका नहि गांधी का राज ।।टेक।।

वे नहि चाहते थे घुसखोरी, व्यसनी, दारूबाज   ।।1।।

वे नहि चाहते थे घर-घर में, महँगा बिके  अनाज ।।2।।

वे नहि चाहते थे  यह शिक्षा, करे  देश  मुँहताज ।।3।।

वे नहि चाहते थे यन्त्रों का, बने  गुलाम   समाज ।।4।।

वे नहि चाहते थे श्रमिकों की, लुटे  दुनिया  लाज।।5।।

वे नहि चाहते थे मन्त्री की,सजधज,चैन-मिजाज।।6।।

कहता तकड्या,वे चाहते थे- देश  रहे  सिरताज ।।7।।


2.गांधी किया बदनाम, हमीने गांधी किया बदनाम

(तर्ज: प्रभू मेरी, नाव किनारे .....) 

 

गांधी किया बदनाम, हमीने गांधी किया बदनाम ।।टेक।।

नहि माना उसका कुछ कहना, बिक गये झूठे दाम।।1।।

शराब पीकर  गाँव   बिगाडा, नेता  लेकर   नाम ।।2।।

घुसखोरी से खाये पैसे, छिपा न   अब   यह काम ।।3।।

धर्म नही और देश नहीं है, ऐसे   हूए   हराम       ।।4।।

कुछ जो रहे नेक अबतक भी,भीखको लगे तमाम।।5।।

उल्टी बही योजना - गंगा, मरे   श्रमिक   बेकाम  ।।6।।

देश-देश के सपने देखे, मनसे   भये   गुलाम       ।।7।।

तुकड्यादास कहे न बचोगे,पडेंगे सिरपर बाम ।।8।।

3. पूरी करो कामना बापु की।

(तर्ज : मजसवे बोल रे माधवा.... )

 पूरी करो  कामना बापु की।

 तबही किरत बढ़े आपकी ॥टिक॥

वे चाहते थे, मदिरा छोडो।

घूस-मिलावट का पथ तोडो ।।

क्यों संगत करते हो साँप की ? 1।।

आजादी  पायी  है  हमने 

सद्गुण सत्‌ चारित्र्य बनाने।।

सीढी चढो, न लो राह पाप की ॥ 2

पीड    परायी  अपनी   मानो।

उन गरिबों के दुख पहिचानो।।

दुर करो बिपद ही   ताप   की  ।।3

यह न करो तब दुख पाओगे।

कहे तुकड्या फिर  पछताओगे।।

यह दौलत किसी के न बाप की।।4।।

 

 4.ऐ लोकप्रिय गांधी! तू शान्ति का सितारा

(तर्ज : हरिनाम हे फुकाचे... )

 

ऐ लोकप्रिय गांधी! तू शान्ति का सितारा ।

शहरोपे थी निगा पर, था ग्रामिणों का प्यारा ।।टेक।।

माने न माने कोई,

तेरा वह राजकारण |

पर मुझका है पता तू गरिबों का था अधारा  ।।1।।

भूखा मरे न कोई,

सबको मिलेगा धंधा ।

यह जानकरके   खादी-चरखा  तूने  सुधारा ।।2।।

इन्सान हों बराबर,

कोउ नीच ना कहावे।

इसके लिए ही तुने हरिजन  वचन  उचारा ।।3।।

ग्रामों की उन्नती को,

उद्योग ग्राम का हो ।

अभिमान देशका हो, हरदम  यहीं  पुकारा ।।4।।

बुनियादी शिक्षणों पर,

था जोर जिन्दगी भर ।

तुकड्या कहे तेरा था, बस प्रार्थना सहारा ।।5।।

 5.था नस - नस में गांधी का नशा

(तर्ज: मेरे दिलमें गुरुने जादू...)

था नस-नस में गांधी का  नशा,

करके हि   जवाहर  आगे  बढा ।

जब मन्त्र मिला गांधी का सही

तब   आजादी   पानेको   लडा ।।टेक।।

कई नौजवान   मरनेको  खडे,

होते थे  उन्हीके कहने   पर ।

कई क्रान्तिवीर थे गरज रहे,

तभी  भगतसिंह   शूलीपे  चढा ।।१।।

अजि! क्रान्ति करो या शान्ति धरो,

पर अब न गुलाम रहे भारत ।

यह वीर सुभाष ने बोल टिया,

तब तो यह  जमाना  टूट   पडा ।।२।।

चारोंहि तरफ हलचल थी मची,

हर बच्चा-बच्चा गाता था ।

आजाद हमारा  हो  भारत,

कह, छाति तान रहता था खडा ।।३।।

तुम   क्या   कहते ?   हमने   देखा,

वह आष्टि-चिमोर का काण्ड बडा।

तुकड्या कहे, हमपर बीत गयी,

जब   पत्थरभी  बम  होके  पडा ।।४।।

 

6. गांधी महात्मा बोल

           (तर्ज: तू माझा यजमान रामा ! ...)

                  गांधी महात्मा बोल-

          बोलकर हुआ देश का मोल ।।टेक।।

खडे हुए सत्याग्रही मरने, बजा  क्रान्तिका  ढोल ।।१।।

जात-पाँत सब एक बनाकर,संघ किया अनमोल ।।२।।

पहनो खद्दर  हाथ  बनाया, लडलो  सीना  खोल ।।३।।

झूठ-कपट,निन्दा नहि करना,करो देशका  तोल ।।४।।

अपना घर-घर ही नहि करना,करुणासे दिल छोल।।५।

हिन्दू-मुस्लिम सब मिल करलो,अब एकीका कोल।।६।।

हों संकट  कितनेभी   आये, बनो   न   डाँवाडोल ।।७।।

कर्मपुष्प   से   देश - देवकी, पूजा   करो    अमोल ।।८।।

तुकड्यादास कहे फल पावे, बापू - बचन   टटोल ।।९।।

 

7 गांधीने दिखाया मार्ग भला, तब तो सवराज मिला हमको

           (तर्ज: मेरे दिलमें गुरुने जादू... )

            गांधीने दिखाया मार्ग भला,

            तब तो सवराज मिला हमको ।

            उनके पहले नेता कड़ थे,

            ऐसा भी पता है चला हमको ।।टेक।।

वैसा तो बढ़े हर श्रेष्ठ पुरुष,कुछ पूर्व समयके ही बलपर ।

पर होता कुछ उसमें अपना, तबही तो दिखाय कला हमको ।।१।।

खैर, जो कुछ हो, पर है तो सही, हाथोमें मिला प्रिय बापूके ।

पंडीत जवाहरलाल के सँग, हँसते बापूहि खिला हमको ।।२।।

अति कष्ट पड़े सबकोहि बडे, जिस कारण दुनिया कहती है ।

भगवानको करना था हि सही,अच्छा दिन यह निकला हमकों ।।३।।

वर्ना इन्सान है क्रोधी महा, वह मरने क्यों तैयार बने ।

बस योग्यहि था ऐसा करना, करके हि दिया सिखला हमको ।।४।।

हम शान्तिके दूत कहा करके,मैदानमें आकर कूद पडे।

तुकड्या कहे हम सब देख चुके,पर आज दिखे न भला हमको ।।५।।

 

8.गांधी ! काँटों से तुमने निकाला था फूल

     (तर्ज: श्यामसुंदर की मीठी लगी...)

गांधी ! काँटों से तुमने निकाला  था  फूल ।

बलके   काँटे  नही  थे, वे   थे  तेज  शूल ।।टेक।।

कौन कहता था, हमको मिलेगा स्वराज ?

कितनी थी हमंमें ताकत या लडनेका साज ?

था न शिक्षण,न एकी, सभी  में  थी  भूल ।।१।।

हम तो पायेंगे आजादी अपनी  जगे ।

लोग सुनकर ये बातें तो हँसने  लगे ।

सारे कहते थे तकलीसे क्या हो  बसूल ? ।।२।।

नमक - सत्याग्रहादि को बदनाम कर ।

कहते, कैसी अहिंसा जितेगी   समर ?

तेरी निष्ठाने उनको   खिलायी   है   धूल ।।३।।

राज्य लेना, चलाना, क्या आसान था ?

ब्रिटिशोंका    जमानाही    तूफान    था ।

कहता तुकड्या गुलामी  हटा  दी  समूल ।।४।।

 

9.तूने रखी सब शान, ओ गांधी !

      (तर्ज: कैसे करूँ तेरा ध्यान, यह मन...)

               तूने रखी सब शान,

ओ गांधी ! तूने रखी सब शान ।

यह तोड दी गुलामी ,ली भारत की हामी,

सत्‌ के पथको दिखाये ।।टेक।।

शान्ति की ढाल बडी मजबूत । सत्‌ की बात बताये सबूत ।

कोई पाया तुझे अवधूत ।।

हरदम तकली घुमाये, राम मुख गाये,

लहराये तिरंगा निशान ।।आओ 0 ।।१।।

घर-घर जाय भरी आवाज । शान्ति के दूत बनाये बाज।

सत्याग्रह दिया सभीको साज ।। 

जय भारत को गाये,तो आजादी पाये,

करने      चले      बलिदान ।।ओ0 ।।२।। 

सत् का बल प्रबल कर हाथ । जनताको लिया सब साथ ।

तुकड्या कहे निभायी बात ।।

भारतसे फिरंगी भागे, लोग सब जागे

उठा     दिया   यह तूफान ।। ओ0 ।।३।।

   

10. ऐ गांधी ! तेरा जो ब्रत था, उसमें साथी भारत था

           (तर्ज: विश्वास पे क्यों बैठा है.. ?)

ऐ गांधी ! तेरा जो ब्रत था, उसमें साथी  भारत  था,

करकेहि क्रान्तिपथ पहुँचा,वह आजादीका रथ था ।।टेक।।

जंगल का सत्याग्रह करने लाख कुल्हाडें छूटी ।

जेल गये नवयुवक, वृध्दभी, बच्चे, बाई- बेटी ।।

               घबरायी         नोकरशाही ।

               बस चीढ   उठी  दिलमाँही ।।

बेगुनाह किसको पकडे ? इतना तो तुझमें सत्‌ था।।१।।

करो नही तो मरो इसी निर्धार पें   आखिर  आया ।

फिर तो सैनिक जिधर-उधर थे,सब धुमधाम मचाया ।

               कहीं पत्थर बम बन पाये ।

               जो दिलमें   आय  कराये ।।

अपना तो भलाही था पर,मानवताका स्वारथ था।।२।।

ऐसी रास रची थी तूने, मोहन ! मनमोहन की ।

जात-पाँत नहि देखी किसकी ,थी सत्‌ के दोहन की ।।

               बस जिधर -उधर था गांधी ।

               वाहवाह रे ! क्या थी आँधी ! !

तुकड्याने यह देखा हैं, गांधी सत्‌का   पर्वत   था ।।३।।

 

 11.प्रीय महात्मा गांधी ! तेरे बचनों में था जोर

      (तर्ज: शांति कुणाला कशी लाभते...)

प्रीय महात्मा गांधी ! तेरे बचनों में था जोर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर ।।

इसीलिए तो बढ गयी जनता बलिदानों की ओर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर ।।टेक।।

ढूँढ निकाले लोग तुने, जो भारत के काबिल   थे ।

उन सारोंको हटा दिया, जो लडनेमें बुजदिल थे ।

इसीलिए सब हिलमिल थे ।।

सत्याग्रह से बढाया साहस, आजादी की ओर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर 0।।१।।

ब्रिटिशों से सत्ता छीनी,सत्य-अहहिसा साधन से ।

प्रेम न उनका था तोडा, गुलामी तो  छोडी   उनसे ।

बडा कुशल तू था सबसे ।।

रामनाम से मोही जनता, शरमाये थे चोर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर 0।।२।।

सब धर्मों का साथ लिया,जोभी मिले पकडे तूने ।

अल्ला-ईश्वर सार्थ कहा, आदर दे   जकडे  तूने ।

काम लिये सबसे अपने ।।

यहि इतिहास बडोंका होता, देखो  पिछली ठौर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर 0 ।।३।।

लाज न थी तुझको आयी, पैसा माँगा   दर - दरपे ।

देशके खातिर लुटा दिया, कौडी ना रखली घरपे ।

इस कारण तू था सरपे ।।

कहता तुकड्या,बयालीस में सम्हले हम भी डोर ।

तपस्या थी तेरी घनघोर 0 ।।४।।

 

12. प्रीय महात्मा गांधी ! तूने सारा सुख आजमाया

         (तर्ज: डमडम डमडम डमरु बाजे...)

प्रीय महात्मा गांधी ! तूने सारा सुख अजमाया ।

             जब के आजादी पाया।।टेक।।

तेरे सुख में बसा था भारत,था सब जनका बोझा ।

रामनाम के जपनेसे वह,मार्ग तुने  था   खोजा ।।

मरवानेसे  मरना  अच्छा, छाती   ढाल   बनाया ।।१।।

सत्याग्रह थी गोली तेरी, मार करे तोपों  का ।

सत्य -अहिंसा-विनयभावसे,था शत्रूको धोखा ।।

तप था तुझमें श्रध्दा-संयम,तोल न छोडे  काया ।।२।।

मानवता के   लिए   लड़ेंगे, रामराज्य   पानेकों ।

जनगण जागृत किया,लगाया घर-घर में गानेको ।।

तुकड्याने भी भजनभावसे पत्थर बाँम बनाया ।।३।।

 

13. आजादि साफल करने, बास तूहि था बापू

       (तर्ज: जाओ उन्हींकी शरणमें. .. )

आजादि सफल करने, बस तूहि था बापू ।

डरता नही था मरने, बस तूहि था बापू ! ।।टेक।। 

लंडन गया था बापू ! गरिबी को दिखाने ।

भारतकी दशा  कैसी, राजाकों   बताने ।।

घुटनेसे धोती पहने, बस तूहि था बापू ! ।।१।।

घर-घर में भीख माँगी-भारत सुखी करो ।


आजाद करो देशको, नहि तो भले मरो ।।

आवाज यह उठाने, बस  तूहि था  बापू ! ।।२।।

लाखो जवान   दौड़े    सैनिक   बने   तेरे ।

सतसे लडाई जीती, तलवार   ना  फेरे ।।

बिगडी सभी सुधरने,बस तूहि था बापू ! ।।३।।

हिन्दू हो या इसाई, इस्लाम, बुध्द भी ।

अनपढ़ रहे या कोई, पंडित, सुबुध्द भी ।।

मतभेद को बिसरने, बस तूहि था  बापू ! ।।४।।

था जब घना अंधेरा, दीपक जला  दिया ।

तुकड्या कहे धरमसे जगको हिला दिया ।।

जीवन की नीव भरने बस तूहि था बापू ! ।।५।।

 

14.ऐ गांधी ! तूही था परम हितैषी

             (तर्ज: सच्चा धर्म नहि जाना. . )

                  तूही था परम हितैषी,

       ऐ गांधी ! तूही था परम हितैषी ।।टेक।।

हतबल थी भारत की जनता, कौन छुडावे फॉसी ?

सब डरते  थे  मरने - मारने, हुई  दशा  थी  ऐसी ।।१।।

सत्य -अहिंसा मन्त्र पाकर,जगा दिया जनता को ।

साधन-शुध्दि भरी जीवनमें, लडे जुल्म से लाखो ।।२।।

सत्‌का हो सत्याग्रह सबमें, जो  मानव  कहलाये ।

अन्यायी   सत्ताके   आगे, सर  ना  झुकने    पाये ।।३।।

संयम हो, सादगी, सफाई, समता  सब  धर्माकी ।

स्वावलम्बी हो जीवन सबका,यह थी नीति अनोखी ।। ४।।

असहकार से जोश बढाया,आत्मिक निर्भयता का ।

पार फिरंगे ! गोली, हमरा बाल न   होगा  बाँका  ।।५।।

हिला दिया साप्राज्य ब्रिटिश का,छोड छोड़कर भागे।

तुकड्यादास कहे  फहराये दिल्लीपर  भी  तिरंगे ।।६।।

 

15.गांधी ! तुने थी भारतकी शान बनायी

     (तर्ज: आओ सभी मिल जायके... )

गांधी ! तुने  थी  भारतकी  शान  बनायी ।

तेरे चले जानेसे फिर न  किसने   निभायी ।।टेक।।

जनतामें जोश   आया   बलिदान  कराने ।

भारतको    गुलामीसे   आजाद    बनाने ।।

थी बाज से चिड़िया की   क्या   खूब  लडाई ।।१।।


घर-घर के  जवानोंने  सीना था   बढाया ।

लाठी चले  या  गोली, झण्डाही चढाया ।।

साप्राज्य को हिला दिया,यह वक्त थी   आयी ।।२।।

काफी  वकील, डाक्टर,  कविराज, पुराणी ।

मौलाना, मण्डलेश्वर, कालेज   के   ग्यानी ।।

भागे   थे    तेरे   पीछे,   करामात     दिखायी ।।३।।

एक घास की कुटी में आसन   था   जमाया ।

ले हाथ अपने चरखा, कम्बल था  बिछाया ।।

शान्ति की माल जपते   जिंदगी   थी  बसायी ।।४।।

थी  राम - रहीमा   की    वह   प्रार्थना   तेरी ।

आदर्श था   ऋषीका, थी   मस्त   फकीरी ।।

तुकड्या कहे वह संस्कृति की ज्योति जगायी।।५।।

 

16. साबरमति के तटपर देखा । सुन्दरसा आश्रम बापू का

         (तर्ज: रामभजनबिन को सुख...) 

           साबरमति के तटपर देखा ।

          सुन्दरसा आश्रम बापू का ।

          मैं   देखने   गया    था  ।।टेक।। 

निष्ठाके,लोग वहाँ । रचना का,कार्य रहा । 

भूमि बडी रम्य थी, योगधाम । 

मैं देखने गया था0 ।।१।।

भाई-बहन,सब थे जिगर । होके रही,गलती मगर ।

कैसे यह बर्दास्त हो, झूठ काम?

मैं देखने गया था 0।।२।।

तब छोड़ा, बापूने । वह आश्रम, क्या जाने?

मंगल बसाया था धाम, सेवाग्राम ।

मैं देखने गया था 0।।३।।

देहाती, प्रीय लगे । दलितों का, प्रेम जगे ।

तुकड्याने भजन किया, लेके नाम ।

मैं देखने गया था 0।।४।।

  

 17.गांधी का था मन्दर सुन्दर । बड-पीपल की छाँवमें

      (तर्ज: रामभजनबिन को सुख पाया... )

           गांधी का था मन्दर सुन्दर ।

           बड-पीपल की छाँवमें भूपर ।

         मैं   भी   वहीं      रहा     था ।।टेक।।


एकहि थी, कुटियासी । सेवाग्राम, धाम बसी ।

जनताकी भीड लगे, आरपार ।

                     में    भी   वहीं 0 ।।१।।

निसर्ग की, लहर खुले । लैन लगा, प्रार्थना चले ।

बापूकी तार चढ़े, एक धार ।

                    मैं    भी    वहीं 0।।२।।

गीता की, प्रिय बाणी । दिल-मनसे, जाती सुनी । 

शान्ति मिले ग्याममें, भक्ति प्यार

                    मैं    भी    वहीं0।।३।।

जो भी मिले, एक कहे । स्वतन्त्रता लेके   रहें ।

यही चलती बात वहाँ, कर सुधार ।

                    मैं    भी    वहीं 0।।४।।

साथी था उनका । सेवाका, चिम्तन का

तुकड्या कहे प्रेमही, था अपार ।

                    मै     भी   वहीं 0।।५।।

 

18. प्रिय गांधीका प्यार अनोखा

       (तर्ज: रामभजनबिन को...)

       प्रिय गांधीका प्यार अनोखा

       मुग्ध हुआ, जिसने था देखा

       आशा     लगी      हुई     थी ।।टेक।।

कब देखें,प्रिय बापू सब कहते प्रिय बापू ! 

बापू का दरबार खुला, जन अफाट

             आशा लगी हुई थी 0।।१।।

चरखेकी,मधुर ध्वनी दिल खींचे,बात दुनी

भारत की नरनारियों - का अधार

             आशा लगी हुई थी 0।।२।।

पत्रों की, ढेर वहाँ पढनेको, समय कहाँ ?

एकहि बात थी दिनरात, कर   आजाद

             आशा छगी हुई थी 0।।३।।

जब बापू चलते थे सबके दिल खिलते थे

बच्चे साथ कंधे   हाथ, थी   कतार

             आशा लगी हुई थी 0।।४।।

वीर कई, युवतियों देने खडी, आहतियाँ

तुकड्याने यह     देखा ,  प्रेमप्यार

             आशा लगी हुई थी 0।।५।।

19. भाग्य उनका था बडा, गांधीजी की संगत मिली

            (तर्ज: आकळावा प्रेमभावे. . . )

भाग्य उनका था बडा, गांधीजी की संगत मिली ।

बोध सुननेको मिला, सद्‌भावना   फूली - फली ।।टेक।।

तेज था उनकी जबाँमें, नहि कहा जाता न   था ।

भाग्य ही फूटा कहो, फिर राह गर   झूठी   चली ।।१।।

चाहते थे वे सभीको, शत्रू   उनको    था   नही ।

गलतियाँ निस्तारने, नित राह उनकी थी  खुली ।।२।।

युध्द करना है   बुरा, हिंसा   महापातक   बने ।

हक्क लेना हो   सही, सत्याग्रही   बनकर  बली ।।३।।

है वही आदर्श शासन, दंड या नहि जेल भी ।

बोल    मानवधर्म   से, वृत्ती   पलटना   है  भली ।।४।।

समझ लाना है. प्रजामें, शील और चारित्र्य का ।

दास तुकड्याने कहा,यह राह कुछ दिन थी चली।५।।

 

 

20.वह गांधीका जीवन सतजुग समान ही था

वह गांधीजी का जीवन सतजुग समान ही था ।

चारित्र्य , रामभक्ती, सच  नेम   प्राण   ही   था ।।टेक।।

थी     छोटिसी    कुटैया,

मिट्टी और बाँसही की । 

चिन्ता थी देशभर  की, वह   एकला   नहीं   था ।।१।।

अपना खुदी  का   खर्चा

हो स्वावलम्बी, कम हो ।

कम्बल और खादी -पंचा,चरखा,निधी यही था ।।२।।

भोजन वही. तुला हो,

बाकी न   बचने  पावे ।

पाबन्दी थी समय की, ना   स्वाद - मानही   था ।।३।।

सब धर्म एक - से थे ।

ना  पंथ-जाति  कोई ।

मानव्य - मूल्य   प्यारे, प्यारा   निसर्ग   ही   था ।।४।।

खुद करके  भंगी - मुक्ती,

दिखलायी  कुष्ठ - सेवा । 

बिन प्रार्थना के एक दिन खाली रहा   नही  था ।।५।।


सारा   हिसाबी   जीवन,

पलपल करार दिल का ।

तुकड्या कहे जो देखा, बाहर-भीतर सही  था ।।६।।

  

 

21बदलने आया । गांधीजी यूग बदालने आया

(तर्ज: सच्चा धर्म नहि जाना...)

युग        बदलाने        आया । 

गांधीजी युग बदलाने  आया ।।टेक।।

कर्मठता की  जोर बढी  थी । 

 छुआछुत - दीवार खडी थी ।

लाखों को समझा-समझाकर ,

मानवता    बढवाया ।। गांधीजी0।।१।।

गुलाम था भारत वर्षों से ।

धर्म पराधीन था ही तबसे ।।

स्वतत्रता की  दे ललकारी ,

सत्याग्रह   करवाया ।।गांधीजी 0।।२।।

मदिरा थी  घर-घरकी  रानी ।

उसकी चाल पडी थी पुरानी ।।

भट्टी के  दरवाजे   जाकर,

व्यसन-मुक्त करवाया ।।गांधीजी0।।३।।

तुकड्यादास कहे  भंगी को ।

घृणाबुध्दि जन देखे उनको ।।

हाथ बकेट उठाकर बापू,

मैला  साफ  कराया ।। गांधीजी 0।।४।।

 

 

 22,बापुने सुंदर कुटिया बनायी

       (तर्ज: सच्चा धर्म नहिं जाना... )

             सुंदर कुटिया बनायी,

      बापुने सुन्दर कुटिया बनायी ।।टेक ।।

सेवाग्राम में आसन मारा, पिछडों को सुधराने ।

सबसे मिलते मैंने देखा, भारत   मुक्त   कराने ।।१।।

घासफूस, बाँसोंकी जाली, दर्भासन,खद्दर से ।

पवित्रताके आगे वैभव झुक जाता   आदर   से ।।२।।

देहाती का रहना वैसा गांधीजी का जीना ।

बडा काट-कसरी था,उनका हिसाब लेना-देना ।।३।।



 23.बनिया था गांधी हामारा

(तर्ज: रामभजन बिन को...)

बनिया ही था   गांधी   हमारा ।

हिसाब रखता रति-रति सारा ।

कौडी         नहीं         गुमाता ।।टेक।।

भीख मँगे, जगे-जगे । सब ले जो हाथ लगे ।

खर्च करे न छदाम, झूठे का ।

कौडी नहीं गुमाता ।।१।।

कपडा थी, छोटा था । खद्दर का खुद काँता ।

साफ रहे हाथ-धुला, धोबी को-

कौडी नहीं गुमाता ।।२।।

गादी भी थी छोटी । बैठें तो, छुप बैठी ।

चटाई के आसन थे, सिंदताड ।

कौडी नहीं गुमाता ।।३।।

भोजन भी,अल्प करे । हाथकुटा, नाज धरे ।

मिर्च नही नमक नही,सत्व सार ।

कोडी नहीं गुमाता ।।४।।

जरुरत को खर्च करे । फिर उसमें कुछ न डरे ।

तुकड्याने आँखों  देखा, त्याग यार !

कौडी नहीं गुमाता ।।५।।

 

 

 24.गांधी उठे प्रातःसमय, प्रातःस्मरण करतेहि थे

               (तर्ज: हिंदभूच्या लेकरा...)

गांधी उठे प्रात:समय, प्रात:स्मरण करतेहि थे ।

कोई रहे या ना रहे, निज मार्ग अनुसरतेहि  थे ।।टेक।।


सोते अगर   सेवक    वहाँ, उनको   जगाते    प्रेमसे ।

खुदका ख़ुदी कर काम सब,दो-चार मिल फिरतेहि थे ।। १।।

चरखा चलाते बैठकरके, आत्मका चिन्तन   करे ।

यह देश कैसे हो सुखी ? सब योजना स्मरतेहिं थे ।।२।।

जो भी कोई आया हितैषी बात   कर   समझायेंगे ।

इस देशका तू है घटक यह  भावना   भरतेहि   थे ।।३।।

सत्प्रेम उनका था निरागस, बालकों -बहनोंहि पर ।

दलितों-मरीजों से भी मिल सबका भला बरतेहि थे ।।४।।

सुविचार लिखते थे कभी, उपवास रखते मौन भी ।

तुफानमें भी शान्तिसे नित  प्रार्थथा   करतेहिं   थे ।।५।।

निन्दा चले, आपत्ति हो, पर्वा न थी  गांधीजीको ।

तुकड्या कहे ना हो बुरा, इस बातसे   डरतेहि थे ।।६।।

 

25.गौओंकी करता था सेवा, गांधीजी

            (तर्ज: सच्चा धर्म नहि जाना.. )

                 गौओंकी करता सेवा,

          गांधीजी गौओंकी करता सेवा ।।टेक।।

घास डालकर हाथ घुमावे, अंग खुजावे उसका ।

साथीजन से कहे प्रेमसे, भागीदार हो   जसका ।।१।।

गौओंकी   रक्षा   हो   बोले   अपने  भारतमाँही ।

दूध बढे, बच्चे अच्छे हों, बैल मिले  सुखदायी  ।।२।।

घर-घर में हो गौमाताका दूध-दही -मक्खन  भी ।

खेत फलेगा,स्वास्थ्य बढेगा, दिल होंगे सज्जन भी ।।5।।

हरी घास,पानी अति सुन्दर,खली-खुराक खिलाओ ।

फिर देखो माता का वैभव, दस देदो  सौ   पाओ ।।४।।

एक दिन देखी तडपती बछिया,दु:ख सहा नहि जावे ।

उसको मुक्ति दिला दो बोले, जो बचने नहि पावे ।।५।।

आजादी में भारतमें   गर   गैया    कट   जायेगी ।

कहता तुकड्या गांधी बोले, मुझे मौत  आयेगी  ।।६।।

 

 26. निर्मल मन गांधीका, रे ! देखा

         (तर्ज: सच्चा धरम नहि जाना...)

                  निर्मल मन गांधीका,

         रे ! देखा, निर्मल मन गांधीका ।।टेक।।

करुणा मनमें हीनदीनोंकी, हरिजनसे बडी प्रीति ।

सच्चा भाव हृदयमें  देखा, परमस्नेह  की  नीति  ।।१।।

सब धर्मोसे प्रेम परन्तु, हिन्दु धर्म   नहि  छोडा ।

अपने पुत्र के धर्मान्तर को पागलपन कह  मोडा ।।२।।

कितनी बार समझ दी सबको- अपना धर्म निभाना ।

कौडीखातिर धर्म बदलना,नहि इन्सानका बाना ।।३।।

हिन्दी भाई खत अंग्रेजी लिख   दे, बापू   बाँचे ।

उससे बोले हिन्दी आकर क्यों इंग्लिश में नाचे ? ।।४।।

अंग्रेजोंसे खुलकर लड़ते न्यायनीति के पथ से ।

कहते थे हूँ मित्र उन्हींका, करूँ   भलाई  व्रत  से ।।५।।

नेताजी के क्रान्तिमार्ग से दूर सदा मन   भा  गा ।

पर कहते गर सफल बनोगे,पहले धन्य  कहूँगा ।।६।।

मै सच्चा हिन्दू हूँ कहकर   इश्वर- अल्ला   गावे ।

स्वधर्म का मतलब नहि होता परधमोंको सतावे ।।७।।

भारत सब धर्मोका प्यारा, सब आकर रह जायें ।

तुकड्यादास कहे हम मिलकर बेडा पार करायें ।।८।।

27. बापू ! तू सबका प्यारा था

              (तर्ज: मैं एक छोटासा नहा...)

               बापू ! तू सबका प्यारा था,

तेरा प्रेम समान । भाई और बहनोंपर ।।टेक।।

कस्तुरबा सी धर्म पत्नि को,तुझे भाग्यने सौंपा ।

धन्य शान्ति-सेवा की मूर्ति,करुणा की अनुकंपा ।।

               सारी बहनोंपर प्रेम वही,

भेद नही किसी ओर। भाई और  बहनोंपर ।।१।।

बिदेश की मीरा को तूने,निर्भय सेवां बाँटी ।

संरक्षण देकरके उसको,चढा दिया हिम-घाटी ।।

              हजार-लाखो भी महिला को,

तेरा    था   आधार । भाई   और  बहनोंपर ।।२।।

कइ लडकिन को सेवा करने,देशमें तूने छोडा ।

पति - पन्नी को ब्राम्हचर्य का,व्रत देकर घर जोडा ।

             निर्मल प्रेम तेरा बच्चोंपर,

बेडर कर दी  जान । भाई   और   बहनोंपर ।।३।।

तुकड्यादास कहे महिला की,उन्नति तू चाहता था ।

उसके कारण भले -बुरे संकट भी सह लेता था ।। 

            मिलना मुश्किल हे तुझ-जैसा,

इस भारत का प्राण । भाई    और  बहनोंपर ।।४।।

 

28.राम - भजन मे रँगा था बापू, सेवाग्रामवाला

     (तर्ज: अमृत समजुनि प्याली विषाचा...)

राम-भजन मे रँगा था बापू, सेवाग्रामवाला ।

वाहवाह  रे ! उसकी  लीला ।।टेक।। 

अच्छे रहो औ सचही बोलो ।  

सेवाके ब्रतको  नहिं   टालो ।

संयम अपना भला सम्हालो । यहि हरदम बोला ।।१॥

तीन बन्दरोसे ब्रत सीखो । 

शुभही कहो,सनो ओर देखो । 

नहि तो काबू कर अपनेको । जपो  नाम - माला ।।२।।

सीधे रह सादगीसे जीओ ।

छल-बल की वृत्ति को हटाओ ।

अन्तर्मुख होकर प्रभु गाओ । लो अनुभव प्याला।।३।।

मानवता हो  धर्म हमारा ।

प्रेमका दीपक करे उजारा ।

तुकड्या कहे फिर तारनहारा । मोहन अलबेला ।।४।।

 

 29.गांधी का हमेशाही बस एक था भजन

        (तर्ज: जाओ उन्हींकी शरणमें.. )

गांधी का हमेशाही बस एक था भजन ।

आजाद करो मुल्क,नीति साधलो सजन ! ।।टेक।।

बस रामनाममें भी यहही पुकार थी ।

चाहे किसीने गाली  दी   तोभी   हार   थी ।।१।।

चरखे की गूँजमें भी, बस एक था भजन ।

अपमान कष्ट सहना, फिरभी खुशी रहा ।।२।।

सैनिक बनो शान्तीके घर-घरमें यह कहा ।

सोते औ चलते -फिरते,बस एक था भजन।।३।।

सब धर्म-जाति-पंथ को नजदीक बुलाया ।

हम एक है, एकीपमें  रहेंगे   यह   सुनाया ।।४।।

भंगी की मुक्तिमें भी, बस एक था भजन ।

अस्पृश्यता   हटाओ   नारा   चला   दिया ।।५।।

महारोगको मिटाओ सबको बता दिया ।

तुकड्याने सुना देखा,बस एक था  भजन ।।६।।

 

 30.नहि हूँ मैं गांधी का चेला, ना लूँ किसका पक्ष

       (तर्ज: शांति कुणाला कशी लाभते...) 

नहि हूँ मैं गांधी का चेला, ना लूँ किसका पक्ष ।

मेरा तो हरि-भजनों में लक्ष ।। 

जो मुझ से कुछ कहना चाहें,सुनलें मेरी साक्ष । मेरा तो0 ।।टेक।।

बापूने जब प्रेम किया,भक्ति-भजनको सुनकरके ।

मैं तो रोज सुनाता था, आयी लहरसे जी भरके ।।

बरखा भजन  नये करके ।

प्रसन्नतासे उनके दिलके खुलते थे सब कक्ष । मेरा तो 0।।१।।

सेवाग्राम की झोपडिया,उन्ही दिनों बस एकही थी ।

हम दोनों रहते थे वहीं,कस्तुरबा नजदीक ही थी ।।

सात्विक थी वह देवी सती ।

बडे बड़े सब लोग बापूसे मिलते मेरे समक्ष । मेरा तो0 ।।२।।

मोम भी था दिलका बापू, वज्रसमान कठोर भी था ।


चुगलीखोर का था द्वेषी, सच्चे का चितचोर भी था ।।

हरपल को तैयार भी था ।

तुकड्यादास कहे वह पाया सेवा करके मोक्ष । मेरा तो0 ।।5।।

 

31.प्रेम मुझपर बापू का था, इसमें मुझको शक नही

            (तर्ज: हर जगह की रोशनी .. )

प्रेम मुझपर बापु का था, इसमें मुझको शक नही ।

मैं भी उनके साथ था,पर मुझपे किसिका हक नहीं ।।टेक।।

जो भी हों प्रभु-भक्ति-इच्छुक,

वे मेरे सब मित्र है ।

उनकी सेवावृत्ति का, मेरे हृदय  पर  चित्र  है ।।१।।

हों किसीके   शिष्यगण,

या हों किसीके श्रीगुरु ।

सबसे मेरा स्नेह है,में कार्य सच सबका करूँ ।।२।।

प्रेम करते देशपे  जो,

साथ करते धर्मका ।

वर्म जँचता है मुझे, उनके सभी शुभ  कर्मका ।।३।।

बापु का आदर्श था

एक सन्त-सज्जन-भक्त का ।

कहत तुकड्या, थी करूणता, रोग ना आसक्ति का ।।४।। 

 

 

32.मैं गांधीजी का नहि शिष्य रहा

        

  (तर्ज: दिलमेंहि नहीं जब शांति...)

मैं गांधीजी का नहि शिष्य रहाना गांधी मेरे कहिं भक्त रहे ।

पर प्रेम था हम दोनोंमे बडा,वह मिट न सका,कोई लाख कहे ।।टेक।।

हम मानवता के पहले ही,

दोनों थे पुजारी अपने में ।

जब भेंट हुई प्रिय गांधीसेवे भजन सुने अलमस्त हुए ।।१।।

सेवाही हमारा मकसद था,

जो बचपनसेहि रहा मुझमें । 

मैं जंगल-जंगल घुमता थागुरु आडकुजी जब छोड गये ।।२।।

अध्यात्महि मेरा जीवन था,

और गांधीका भी लक्ष्य वही ।

जन-जीवनको सुधराने की,थी एक लगन,फिर क्यों न चहें ।।३।।

कुछ दिन हम दोनों साथ रहे,

जब सेवाग्राम में बापू थे । 

हररोज लिखी बरखा मैनेगांधीजी सुन तल्लीन भये ।।४।।

उनके गौरव और सेवाका,

मुझको तो सदा आदर हि रहा ।

तुकड्या कहे मुझ जैसे पागलपरप्रिय गांधीने खुब प्रेम किये ।।५।।

33.बिना भेखका साधू,गांधीजी बिना भेख का साधू

       (तर्ज: सच्चा धरम नहि जाना...)

                 बिना भेखका साधू,

       गांधीजी बिना भेख का साधू  ।।टेक।।

घुटनेभर तो खद्दर   पहने, अंग  सदाही   खूला ।

लकडी के थे पाँव खडाऊ, तकली -चरखेवाला ।।१।।

सत्य -अहिंसा ब्रत था उसका,रहनी से था त्यागी ।

देशके खातिर माँगे चुँगी, दीनों  का   अनुरागी ।।२।।


जोभी मिले अति प्रेमसे बोले,सबही अपने जाने ।

बिन खद्दर के जो दिखता हो,खडा रहे समझाने ।।३।।

गरिबोंकी रोटी है खादी, क्यों न इसे   अपनाओ ।

दूजा साधन हो गर कोई, कहे   हमें   समझाओ ।।४।।

अपने घरमें यन्त्र बनें जब, मैं हूँ   उनका   साथी ।

विदेश का यह जाल हटाओ,कौन रखेगा हाथी ?।।५।।

सेवामय था जीवन उसका, निसर्ग से थी प्रीति ।

साधन शुध्दि सदा प्यारी थी,सभी  क्षेत्रमें  नीति ।।६।।

निर्भयता से खुली तौरपर, अपने    दोष   बतावे ।

पहाड़ भी हो पडा सीसपर, जरा नही डिंग जावे ।।७।।

बिना प्रार्थना रहे न एकदिन, चाहे दिक्कत आवे ।

तुकड्यादास कहे वह दिलमें, रामनाम ही  गावे ।।८।।

 

 

34. रामभक्ती के भरोसे, गांधीजी रडते रहे

          (तर्ज: आककावा प्रेमभावे. . . )

रामभक्ती के भरोसे, गांधीजी लड़ते रहे ।

दीन जनता के हि बलपर, गांधीजी  बढते  रहे ।।टेक।।

तेज था उनकी तपस्या   का   बडा   संसारमें ।

करके ही हलचल मची, पथ गांधीजी गढते रहे ।।१।। जो मिला अपना किया,यह जादू था उनमे  भरा ।

सच्चरित सज्जन मिले,तब गांधीजी उडते रहे ।।२।।

खादी अपनायी भली, गरिबों की रोटी मानकर ।

हर कहीं चरखा दिया, उस सूत्रसे   चढते   रहे ।।३।।

हरिजनों या कुष्टि, दलितों के बडे सेवक   बने ।

दास तुकड्या यों कहे, जन गांधी ही पढते रहे ।।४।।

 

35.गांधीजी चिन्तन करे, भारत मेरा उन्नत बने

              (तर्ज: आशा तुजभोवती. .. )

गांधीजी चिन्तन करे, भारत मेरा उन्नत बने ।

हो फटाटूटा भले, पर नेकही   सेवक   बने  ।।टेक।।

नीच - ऊँचा भेद छूटे, सब बराबर प्रेमी   हों ।

कार्य अपना सब करें, पर मेल से ही बल बने ।।१।।

तेज हो तप का यहाँ,और त्याग की हो मान्यता । 

ग्यानी हों निर्भय, प्रजा सत्संग के लायक बने ।।२।।

मेरी पूजा है यही, उपकार   सबका    धर्म   हो ।

सन्त-मतके बापु थे, अब शास्त्र भी  वैसे  बनें ।।३।।

हिन्दु हो, मुस्लीम हो, या हो इसाई  बुध्द भी ।

सत्य का पद प्राप्त करने, ये सभी तत्पर बनें ।।४।।

कोई यदि मेरा कहावे, पर चले   विपरीत  ही ।

कहत तुकड्या वह जमाने में कलंकित ही बने।।५।।

 

 36. गांधी ही अपने ढंग का ऊँचा फकीर था

     (तर्ज: आओ सभी मिल जायेके...) 

गांधी ही अपने ढंग का ऊँचा फकीर था ।

था लोकप्रीय सच्चा, मानव का पीर  था ।।टेक।।

भंगी रहे या ब्राह्मण, सबसे  समान   था ।

मजदूर-अमीर-साहब,सबकी ही जान था ।

बैठे महल या कुटिया, फिरभी वजीर था ।।१।।

अल्लाह जपो कोई, या  राम - नाम  लो ।

चाहे जपो येशूको, कहे दिलसे काम लो ।

सादे रहो सीधे रहो, यह मन्त्र  धीर   था ।।२।।

उद्योग-खेती का तो, प्यारा था वह मोहन ।

गैया की भी आँखोंका,तारा था वह मोहन ।

हर गाँव - गाँव उन्नत  करने  अधीर  था ।।३।।

बेकार   न   हो  कोई, श्रमसे    जिये - मरें ।

कालाबजार ना हो, व्यभिचार   ना   करें ।

तुकड्या कहे गीता का,वह भक्त-वीर था ।।४।।


37.साराही देश जागा गांधी के बोलसे

       (तर्ज: एहसान मेरे दिलपे... )

साराही देश जागा गांधी  के  बोलसे । 

अंग्रेज भी तो भागा गांधी के बोल से ।।टेक।।

कारण तो इसका तप था और सत्य था भरा ।

थी देश-धर्म की कदर, जबान का पुरा ।।

निर्भय था अपने तोलपर, आत्माकी खोजसे ।

            अंग्रेज भी तो भागा0।।१।।

किसने कहा कि चरखे से क्या  लडाई  हो ?

उसने कहा कि आओ तब तो   बडाई   हो ।।

भारत में बने खादी अपनीही   तोल   से । 

            अंग्रेज भी तो भागा0।।२।।

बन्दूक नहीं   होगी, होगी    नहीं   छुरी ।

सीधी जबान बोलो, कहना  नहीं   बुरी ।। 

तुकड्या कहे सम्हालो आजादि मोल से ।

            अंग्रेज भी तो भागा 0।।३।।

 

.38.येशु में औ गांधी में, हमने फरक देखा नही

         (तर्ज: हर जगह की रोशनी में...)

येशुमें औ गांधी  में, हमने   फरक   देखा  नहीं ।

भगवान बुध्द भी है वही,इसमें मुझे शंका नही ।।टेक।।

शांतिदुत ये   थे   सभी,

आदर्श थे   मानव्य के ।

मरनाही सीखा था मगर,मारा किसीको भी नहीं।।१।।

अन्याय  के  व्देषी थे ये,

थे  झूठके निंदक  बडे ।

इनमें नही था भेद कुछ,था जाति धर्म भी एक ही ।।२।।

एक ईश्वर, एक मानव-

धर्म वर्म भी   एक   है ।

कहते फिरे चारों दिशा, उसके  लिए  ठहरे  नहीं ।।३।।


हिन्दुओ   का    जो   भरा,

वेदान्त ओ सिध्दान्त था ।

दास तुकड्या यों कहे, उनके ही मत ये हैं  सही ।।४।।

 

39. प्रिय महात्मा ! तूहि था भारत का सच्चा जौहरी

            (तर्ज: हर जगह की रोशनी में ... ) 

प्रिय महात्मा ! तूहि था भारत का सच्चा जौहरी ।

तूनेहि परखे देशके जो मूल्य थे सब आखरी ।।टेक।।

सत्यही ढूँढा तुने   करके   अहिंसा - साधना ।

त्याग-भूषण की  बनायी  माल, पहनी  कामरी ।।१।।

ब्रह्माचर्यादि  ब्रतोंसे, मोह डाला   शत्रुको ।

अस्तेय मन उस ब्रह्ममें,रखके बजायी  बाँसुरी ।।२।।

सब मेरे- मैं हूँ सभीका,जीव-शिव नहि भिन्न है ।

सिध्दान्त दुनिया को दिया,पूरी फकीरी थी तेरी ।।३।।

रामनाम की धून भरायी रामराज्य की राहमें ।

जो भी हो अपनी  तुने   पूरी   करा  दी   चाकरीं ।।४।।

अखिल मानव की भलाई को तुने अपना  लिया ।

कहत तुकड्यादास अबतक गूंजती तेरी वैखरी।।५।।

 

 40.तेरे रामनाम मुख में था, था नम्र सभीसे माथा

         (तर्ज : विश्वास से क्यों बैठा है ?...)

तेरे रामनाम मुख में था, था नग्र सभीसे माथा ।

था जनता का सेवक तू,

करुणासे भरा बापू था ।।टेक।।

हरिजन का प्यारा था, वैसा ब्राह्मणका भी  तू   था ।

भंगीमुक्ति चाहता था तू,हर मानव को हि जगाता ।।

तेरी प्यारी अहिंसा ही थी ।

सत् की अपनायी   नीति ।।

यह कीर्ति छिपी नहि किससे,शत्रुपर प्रेम तेरा था ।।१।।

तू था उसका निंदक, जिसने देश गुलाम  बनाया ।

मानव की प्रगती में जो भी रोडा   बनकर   आया ।।

बस देशको छुडवाना था ।

आजाद बना   देना   था ।।

वहि बडी प्रतिग्या तेरी,भगवान को निबटाना था ।।२।।

छलबल  करनेवालोंने तो तुझपर   बिपदा   लायी ।


पता चला पर तू निश्चल था,शान्ति अचल थी भाई !

तेरी आत्मशक्ति का बाना ।

था     फिरंगियोंने   जाना ।।

तुकड्या कहे इस कारणही,तेरा भारत पे काबू था ।।३।।

 

 41.सता रही है वह याद मुझको,जो पूज्य गांधीसे हो गई है

               (तर्ज: यहाँ वहाँ कया कहाँ... ) 

सता रही है वह याद मुझको, जो पूज्य गांधीसे हो गयी है ।

तडप रहा रहा है जिगर मगर- होनहार होनेकी होगयी है ।।टेक।।

वह राज्यक्रान्तीकी धार थी जो, कदममें ऊधम मचा रही है ।

गया महात्मा अमर हुआ पर, जगत्‌की इजतही जा रही है ।।

अजब थी रोशन आवाज उनकी, न बम्‌ न बन्दुक बढे कहीं है ।

मिलायी सत्ता, स्वराज्य पाया, दया-अहिंसाहि तो सही हैं ।।

अजब था बापू ! दिमाग तेरा, महल मिला पर रहा नहीं है ।

निवास तेरा था भंगियोंमे, यही स्थितप्रज्ञता सही है ।। १।।

न मुस्लिमोसे था बैर तेरा,न ख़िश्चनोसे भी द्वेष देखा ।

न हिन्दुओंकी रुढीपर आशक, सभीमें समता हितेश देखा ।।

बिमार हो या हो कोई तगडा,अमीर हो या गरीब देखा।

रहे वह बम्मन या कोई हरिजन, हुशार है तो करीब देखा ।।


तू था भिखारी, सदाका तुझपर, न भरके खादीका वस्र देखा ।

चलायी भारतकी सल्तनत पर, न पास थोडाभी शस्र देखा ।।

हटाया रूढीको तूने सबही, शहीदमें तू कमी नहीं हैं ।

तडप रहा है जिगर मगर, होनहार होनेकी हो गयी हैं ।।२।।

है इस नये युगका तू विधाता, न किसने पाया दिमाग तेरा ।

बडे मुत्सद्दी ब्रिटीश थे पर,उठाया तूनेही उनका डेरा ।

साहित्यमें तू,कलामें तू ही,था गद्य कविता-बहार तेरा।

कदरमें तू, बेकदरमें तूही, सत्‌-न्यायमय था दिदार तेरा ।।

सभी जगत्‌के नरेश नेता-भी मानते थे विचार तेरा ।

खुदीकी करनीसे तू महात्मा हुआ वाहवा ! सुधार तेरा।

थी किसने तुझपर चलाई गोली? वे सैंकडो थे, न एकही है ।

तडप रहा है जिगर मगर-होनहार होनेकी होगयी है ।।३।।

ऐबापू ! तूने तो देशभर जो, किया हुनर, हम भुले नहीं है ।

तेरा बगीचाहि है भरा सब, जो ना कहे वह तो शत्रूही है ।।

तेरे नियमका रहा जो पाबंद, उसीसे दुनिया यह झुक रही है ।

तेरी नजर जिसपे है कडी वह-चढी चढीपरहि सुख रही है ।।

है बालकोंमे तू प्रिय सबको, सभी बहन-भाइको सही है ।

है कौन ऐसा इस देशभरमें ? जिसको कि तुझसे अदब नहीं है ।।

वह दास तुकड्या की आस यों है,करूँगा सेवा जो कुछ रही है ।

तडप रहा है जिगर मगर-होनहार होनेकी हो गयी है ।।४।।

 

 42.तेरी पावन कुटी में खडा हो कोई ।

    (तर्ज: श्यामसुंदर की मीठी...)

तेरी पावन कुटी में खडा   हो   कोई ।

आँख में जल भरे, धार रुकती नहीं ।।टेक।।

प्रीय बापू ! तुने देश को जो दिया ।

कौन नहि जानता? कुछ न बदला लिया ।।

एक  रोटी   औ   खद्दरहि   तेरी   रही ।।१।।

एक फूटा खडाऊ औ माला पडी ।

तेरे चरखे की है यह निशानी खडी ।।

मट्टिकी   झोपड़ी   याद   देती  सही ।।२।।

जिसने देखा था बापू ! इसी स्थान में ।

उसको वैसाही दिखता सही ध्यान में ।।

सारी दुनिया हि दर्शन को आती रही ।।३।।

हम तो कहते, तेरी   याद   है   प्रार्थना ।

जो   करेगा   उसीका   है  गांधी   बना ।।

दास तुकड्या कहे याद किसिको नहीं ।।४।।

  

43.आजा सेवाग्राम में, आजा कोई धाम में ।

(तर्ज: कभी याद करके, गली... )

आज सेवाग्राम में, आजा कोई धाम में ।

चले आना हमारे मोहना ! ।।टेक।।

कोई कहते,  तुझको  हत्यारेने   मारा ।

कोई कहते,  तुझको जमुनाने पुकारा ।।

यह सब तजके, नया   रुप    सजके,

चले    आना    हमारे    मोहना !  ।।१।।

अब लेना हाथोमें समताकी   तारी ।


भारतमें       रहने    न      पावे     भिखारी ।।

खाने-पीनेकों आराम,सबके घरमें देने दाम ,

चले    आना     हमारे    मोहना ! ।।२।।

सारे किसानोंका  दुख दूर करने ।

सब जाति-पाँतिको पूरा बिसरने ।।

रहने मानवता समान,फिरसे देने तेरा ध्यान,

चले     आना    हमारे     मोहना ! ।।३।। 

आजादी जबसे यह भारतमें आई । 

बूरी बला   उसके   पीछे   लगाई ।।

अबतो लेते तेरा नाम,भारत बैठा है बेकाम,

चले     आना    हमारे    मोहना !  ।।४।।

तेरे   विचारोंवे   दर्शन     घड़ेंगे ।

घरघरसे सेवक वे बाहर पढड़ेंगे ।।

तुकड्या करता है पुकार,दे दो फेरसे अधार,

चले     आना      हमारे   मोहना ! ।।५।।

44.  आजा मेरे शांतिके चरखेके बतैया !

             (तर्ज: आजा मेरे बरबाद...)

                    आजा ! आजा ! 

आजा मेरे शांतिके  चरखेके   बतैया !

तेरेबिना सूनी पड़ी भारतकी  मढ़ैया ।।टेक।।

तेरे चले जानेसे सारा भारत दिवाना !

तू तो खुशीसे सो गया,हमरा न ठिकाना ।

चारों  तरफ   घेरी   पड़ी, मँझधारमें   नैया ।।१।।

कइ बार   तूनेहि हमें   झंझटसे  बचाया ।

बिगड़ा कहीं मारग तो फिर-फिरसे दिखाया।

अब किसको पुकारें? बिना तेरे ना रखैया ! ।।२।।

भारतकी तुही शान था, था मान जगतका ।

सबको समेटा था तूने, चाहे कोई मतका ।

आदर था  महात्मोंका, जमुनाके   बसैया ! ।।३।।

तेरेही     नामपर  हम   भारतमें    जियेंगे ।

तेरी बतायी बातोंको    घरघरमें    कहेंगे ।

तुकड्या कहे, गोपाल तुझे देते है   बलैया  ।।४।।

 

45.अमर तुम्हारा नाम, बापू !

           (तर्ज: रामा ! तू माझा यजमान. .)

                     अमर तुम्हारा नाम,

            बापू ! अमर तुम्हारा नाम ।।टेक।।

दूर हटाने देश -गुलामी, किया तुने   शुभ   काम ।।१।।

हरने स्पृश्यास्पृश्य अंधेरा,किया प्रकाशित धाम ।।२।।

नशाबन्दी करनेको अपना,नैतिक दिया   लगाम ।।३।।

बुनियादी शिक्षा देनेको, खोजत   तत्त्व   तमाम ।।४।।

भंगीमुक्ती, कुष्टनिवारण, प्रिय थे ये  सब  कामा ।।५।।

सबके हित तुम  बना  रहे   थे, ग्रामोद्योगी   ग्राम ।।६।।

जीवन था समुदाय-प्रार्थना, जीवनधन  था  राम ।।७।।

ईश्वर-अल्ला   कहकर   तोडा, धर्माका   सग्राम ।।८।।

तुकड्यादास कहे नहि माना, वेहि  हुए  बदनाम ।।९।। 


46.किसने कहा गांधी मरा ?

             (तर्ज : हर जग की रोशनीमें . . )

किसने कहा गांधी मरा ? अजि कहनेवाले मर  गये ।

कीर्ति नहि मरती कभी, निंदक हि आखिर डर गये ।।टेक।।

गांधी तो इस देशकी, चारों  दिशा   में   छागया ।

चाहे ये बदले राज्य भी, सेवाहि से घर कर  गये ।।१।।

कोइ हो शासक यहाँ, पर भारती   हो   सर्वथा ।

कहना था गांधी का यही,अखबार सारे भर गये ।।२।।

जातिपक्ष भी हों नही, अब तो प्रजा की राय   हो ।

उनने कहा और पक्ष छोड़ा,देश के वह सर गये ।।३।।

मैं नही शासक कभी, हूँ प्रेम की   आवाज   मैं ।

कहता तुकड्या, कहते-कहते, गांधीजी तो तर गये ।। ४।।

 

47.बोल दो ऐ बन्धुओ ! गांधी महात्मा कौन था ?

             (तर्ज: आशा तूज भोवती....) 

बोल दो ऐ  बन्धुओ ! गांधी   महात्मा  कौन   था ?

सत्तालोलुप था कि वह निरपेक्ष था, या मौन था ? ।।टेक।।

जात नहि मानी थी उसने, भारतीय हम   है  कहा ।

क्या गलत था सूत्र यह? बस उन्नती का झोन था ।।१।।

मस्त्रि-महामन्त्री भि सब हो जाय समरस लोग में ।

खर्च हो कमती सभी, यह गलत कहना तो न  था ।।२।।

हों ख़ुले मन्दिर सभी, जो   चाहते   उनके   छिए ।

धर्मशिक्षामय हो मन्दिर, जैसे ऋषिका भवन  था ।।३।।

अपने कामों में इमानी सत्यता   स्थापित   करो ।

श्रेष्ठ भक्ती है यही, सद्ग्रंथ-मत क्या यौं न  था ? ।।४।।

शुध्दता,  पावित्र्यता,  मनमें औ   बाहर   चाहिए  ।

गांधी का  कहना   यही, हमने   सुना   प्रत्यक्षता ।।५।।


हरघडी    सेवा   करो   आजाद   अपने    देशकी ।

दास तुकड्या यों कहे, कोई बोल दे यह गौन था ।।६।।


48.गांधी ! तेरे नामका किसने नही फल पा लिया ?

         (तर्ज: हर जगह की रोशनी में . . . ) 

गांधी ! तेरे नामका किसने नहीं फल पालिया ?

वह हुआ जाहीर ही  जिसने तुझे दी गालियाँ ।।टेक।।

नाम तूने रख दिया जीवन के हर पहलूमें भी । 

भक्त भी और बीर भी, सत्याग्रही भी बन गया ।।१।।

हरिजनो का नाम रखने में   तुही  आगे    बढा ।

मन्दिरोंपे जायँ सब,भगवान के जब कह दिया ।।२।। 

कंस के कुछ कृष्ण के, कुछ शान के विग्यान के । 

ऐसे जमाने में भी तूने नाम अपना   कर   दिया ।।३।।

गौ नहीं मारो कहा पीओ   नहीं    मदिरा   कोई ।

पीनेवालोंमे भी तो कुछ मन्त्रिपद  सजवा  दिया ।।४।।

घूँस लेना   और    देना    है   महापातक   कहा ।

गांधी की जय बोलकर किसिने करोडो खा लिया ।।५।।

जिसने तेरे नाम पर बरबाद की सब जिंदगी ।

उसके बच्चोंको जमाने ने  भिखारी  कर   दिया ।।६।।

कर दिया   आजाद भारत, पर न पूरा आजतक ।

कहत तुकड्या देखता हूँ , साल  बीसों   होगया ।।७।।

49.गांधी का लगाया पौधा, जाता गर ऊँचा सीधा

        (तर्ज: विश्वास पे क्यों बैठा है? . .. )

गांधी का लगाया पौधा, जाता गर ऊँचा सीधा

यह स्वर्गहि होता भारत,

आती न उसे फिर बाधा ।।टेक।।

पर सब अपना स्वार्थ साधने बीच बने हैं रोडे ।

अपने व्यसनों के खातिर ही दौड रहे हें  घोडे ।।

ये मानव  नहि, दानव   हैं ।

बस रहनी ही अभिनव है ।।

सत्ताके लिए मर-मरते, नहि फल पाया है आधा ।।१।।

गांधीने बोला था, मन्त्री हल जोते   खेतीमें ।

सेवा करनेको दौडे बह मिलजुल कर जनता में ।।

वह स्वप्न नजर नहि आया ।

इनको    ममताने     खाया ।।

अब तो है बड़ी फजीती,नहि है घोड़ा ना गध्धा।।२।।

सत्याग्रह में जिन लोगोंने   प्राण   तलक   दे   डाले ।

उनके लड़के -बच्चे अबतक किसिने नही सम्हाले ।।

वाह वाह रे ! तुम्हारी नीति ।

बेमान  ने   बाजी     जीती ।।

तुकड्या कहे,हमने देखा,अब क्या बोलेंगे ज्यादा ?।।३।।

 

 50.तेरी सुनी नही बात, ओ बापू !

(तर्ज: कैसे करूँ तेरा ध्यान? ...)

तेरी सुनी नही बात, ओ बापू !

         तेरी सुनी नही बात ।।

तबसे ही बिगड़ा भारत, पीछे लगा स्वारथ ।

अपनाही गीत सुनाये ।।टेक।।

आपसभमें बढायी फूट । सजन की मचायी लूट ।

यह चलता दिखे सब झूठ ।।

दुधमें पानी मिलाये,नशा खूब खाये,

इन्हें अब कौन बताये ? ।।१।।

दिल पहलेहि था बन्दर । उसे सत्ता मिली सुन्दर ।

निशाचन नाच रहे दिलभर ।।

कौन है आडा जाये ? खतम हो पाये,

समझत   नाहि   उपाय ।।२।।

परिश्रम की बड़ी है लाज । बडप्पन की बढी है प्यास ।

सारा भारत पडा है उदास ।

देखके तुकड्या बोले, प्रभू ! ये निभाले,

फिर नही  सुधरा  जाये ।।३।।

 

51.प्रीय गांधीजी ! तेरा सवराज क्या ऐसाहि था ?

              (तर्ज: है नहीं जिसमें कदर... )

प्रीय गांधीजी ! तेरा सवराज क्या  ऐसाहि  था ?

जिसमें चोरी और डकैती का कहर वैसाहि था ।।टेक।।

झूठ लेना और देना, दिनदहाड़े   खून   हो ।

लाच लुचपत भी बढे, सबका प्रभू पैसाहि था ? ।।१।।

भाई-भाई में न बनता, गाँवमें झगडे मचे ।

मान-सत्ता के लिए, मुरगे  लडे - जैसाहि   था ? ।।२।।

बेच दें नकली दवा, चाँवल में कंकर डाल दम

नाज भी न मिले,गरीबों का गुजर कैसाहि था ? ।।३।।


हो अधार्मिक देश सारा, नाश हो चारित्रय का ।

आलसी जनता रहे, क्या सोचना भैंसा  हि  था ? ।।४।।

गर नहीं था लक्ष्य यह, तब आज केसे आगया ?

तू गया सबही गया,तुकड्या कहे नहिसा हिं था ?।।५।।

   52.दिन दहाडे करते चोरी, फिर गांधी भजते

          (तर्ज: शांति कुणाला कशी... )

दिन दहाडे करते चोरी, फिर गांधी भजते ।

जरा नहि क्यों दिल में लजते ? ।।

बापू ने क्या यही बताया ? क्या कहने धजते ?

जरा नहिं क्यों 0 ।।टेक।।

देशभक्त हो कैसे तुम? गांधी को बदनाम किया ।

घूँसखोर लुचपत खाते, क्या गांधीने बोल दिया?


गांधी खत्म तुमने हि किया ।।

अब तो सुधरो, नहि तो बिगडे भारत के रिश्ते ।

जरा नहि क्यो 0 ।।१।।

आज प्रतिग्या लो हमसे, झुठ जरा अब हम न चलें ।

सबकी भलाई करने को, हम भी घर-घर बढें  भले ।

बोलो मजलिस में ही खुले ।।

तुकड्यादास कहे दिन बदले, अब कबतक सजते ?

जरा नहिं  क्यो 0।।२।।

53.लग गयी बापू को तार थी

(तर्ज: मजसवे बोल रे माधवा... )

लग गयी बापू को तार थी-

यह उन्नत हो सब भारती ।।टेक।।

भूखा यहाँ रहे   ना   कोई ।

विद्या धन पावे  सबकोही ।।

हो न   आलसी  भ्रष्ट  मति ।।१।।

दुनिया में ऊँचा हो  भारत ।

हो आध्यात्मिक जीवन में रत ।।

नर हो राम और नारी सती ।।२।।

कष्ट सहे इस कारण लाखो ।

जेल में खत्म किया उस बा को ।।

दिया   अन्त  में   राम  रथी ।।३।।

इस  कारण पायी  आजादी ।

पाप - कर्मकी  टूटे  उपाधी ।।

तुकड्या कहे वह रहे स्मृति।।४।।

54.  गांधी का वह जीवप्राण

  (तर्ज : कैसे करुँ तेरा ध्यान ? ) 

      गांधी का वह जीवप्राण,

अरे भाई ! गांधी का वह जीवप्राण ।

सच नीती अपनाये, प्रभू मुख गाये,

साची रहन सिखाये ।। गांधी ।।टेक।।

मीठी बात परन्तु साच । हिम्मतबाज गरीब-नवाज ।

भूले नही मिला भी राज ।।

सेवा को अपनाये, पक्ष नहि भाये,

हरदम    भेद   मिटाये ।।गांधी 0 ।।१।।

छुआछुत करमपर होय । बिगडा भी खुदी को धोय ।

संकट में वह कभी ना रोय ।।

हर मानवसे नाता, प्रेम फैलाता,

और न कुछ भी सुहाये ।।गांधी 0।।२।।

यही कहते रहा गांधी । हो तुफान या आँधी ।

नहि भायी  उसे  गंदी ।।

तुकड्या राह बताये,दिखा सोही गाये,

जन-जन  में   पहुँचाये ।। गांधी0 ।।३।।

55.गांधी का यह मंत्र था

      (तर्ज : हे राम तेरे नामका ? ... )

गांधी का यह मन्त्र था, मत भूलना कहीं ।

अच्छे रहो, सच्चे रहो, हर  बातमें  सही ।।टेक।।

चार दिनकी जिंदगी में,नेक रहो बंदगी में ।

सबकी भलाई  में   भला, मान   लो   यहीं ।।१।।

देश डबे तो किसिके,मान कभी रह न सके ।

इसलिए आजाद   रही, प्रगत   नित्य   ही ।।२।।

देशमें हर बात बहे, सोचो,कमी कुछ न रहे ।

भंगी काम की  भी   हमे, लाज   हो   नहीं ।।३।।

वक्त पे पूजा भी करे,खेत जाके हल भी धरे ।

सब कलाओं में   भला, इन्सान   है   बही ।।४।।

पहले खुद अमल किया,फिर सबको बोल दिया।

तुकड्या कहे मनको जीत, जीतली   मही ।।५।।

 

56.गांधी हरवक्तहि कहते थे

             (तर्ज: मेरे दिलमें गुरुने जादु.. . )

गांधी हरवक्तहि कहते थे,जो द्वेष करे वहि द्वेषी तने ।

जो प्रेम करे प्रिय होत वही,गुणग्राहक हो गुणराशि बने ।।टेक।।

जो नेम धरे नीतीपथ का,वहि नीतिमान कहलावेगा ।

अपने बलपर बढता हो कोई,वहि अन्त सुखी अविनाशी बने ।।१।।

आयेगा जमानाही ऐसा, अपनेसे बचो बच पाओगे । 

नहि तो किसी के हो जाओगे, फिर दास बने या दासी बने ।।२।।

किसिको धमकाते अगर चलते, धमकाये किसीसे जाओगे ।

यह ईश्वर का कानून है सही, टलता न कहीं भी उदासी बने ।।३।।

करके सुनिए मेरी बात सही, सच्चेही रहो अच्छेही रहो ।

तुकड्या कहे फिर धोखाहि नही,फिर तो जहाँ वहि काशी बने।।४।।

 

57.सत्य का प्रयोग बापू

      (तर्ज : समझ में आवे माया...)

सत्य का प्रयोगी बापू, भाग्य से मिला ।

सत्य बनाने को जीवन, मार्ग से चला ।।टेक।।

रोज-रोज ही कहता था

सत्य रूप ईश्वर का  है ।

अमल में जो लावे अपने, होयगा  भला ।।१।।

सत्य शब्द सिद्ध पुरातन,

जानते सभी है जन-मन ।

कौन दे रहा बल उसपर,जानके खुला ?।।२।।

व्यर्थ सभी  बातें   मनभर,

सत्य श्रेष्ठ होता कणभर ।

खींच ले सभी दुनिया को,सत्यकी कला ।।३।।

सत्य बोलने   का  ब्रत  ले,

सिद्ध वाणी होगी उसकी ।

कहे दास तुकड्या,जीवन सत्य में घुला ।।४।। 

 

  58.बापुने कुष्ठरोगी को अपना लिया

(तर्ज : श्यामसुन्दर की मीठी...)

बापुने कुष्टोगी  को   अपना   लिया ।

खुद मला हाथ से करके सेवा किया ।।टेक।।

दर्द उनके हृदय में था करुणा भरा ।


भूले - भटके   को   देते    सहारा   पुरा । 

उनकी आत्मा ने भारतहि घर था किया ।।१।।

कुष्टियों के भी है देह इन्सान के ।

टूटे-फूटे ये मन्दिर हैं भगवान के ।

भावना थी यही, था तडपता जिया ।।२।।

सच्ची ईश्वर की भक्ती हि सेवा कहा ।

जो करेगा सो पावेगा मेवा कहा।

संग वहीं आयगा, दान जो दे  दिया ।।३।।

गांधी का पूर्ण सेवा में इतबार था।

और ईश्वर की श्रद्धा में निर्धार था।

उसलिये अन्त में  राम  ही  आगया ।।४।।

गांधीने हर जगह मन्त्र बोला यही ।

कुष्टके निर्मुलनकी ही इच्छा रही ।

दास तुकड्या कहे,नाम रोशन किया ।।५।।

 

  59..प्रीय महात्मा गांधी बोला

(तर्ज : रामभजन बिन को सूख... )

प्रीय महात्मा गांधी बोला-

मुझकों जन्म मिले गर अगला,

भंगी   ही   मैं बनूंगा ।।टेक।।

मानव की बडी , भारी, सेवा फिर क्या दुसरी ?

स्वच्छ गाँव मन्दिर सम

करने   यही   चलूंगा ।।१।।

मानव से पाप लिया, हरिजन को दूर किया ।

यह  रीति - नीति नही,

बेशक   यहीं   कहूँगा ।।२।। 

जिसने नीच कर्म किया,उसको क्यों मान दिया?

कहे तुकड्या धर्म नही

इसमें न   मैं  जीऊँगा ।।३।।

60.गांधीजी का यह वचन अनोखा

(तर्ज: रामभजन बिन को सुख पाया... )

गांधीजी का यह बचन अनोखा,

आदमी   भंगी   बनाना   धोखा,

अपमान थो  लिये   जा  ।।टेक।।


घर-घर में संडास बनें, स्वच्छ रहें घर अपने । 

खेतीको    खाद     मिले,

ऐसा ही तो   किये   जा ।।१।।

अपना काम करे दूसरा,यह तो आलस्य पूरा ।

फिर उसको नीच कहो,

यह शाप क्यों दिये जा ?।।२।।

श्रमिकों को नीच कहें, अपने नीच भी ऊँच रहें ।

यह कहाँ का न्याय चला ?

अब तो न यह  सहे  जा ।।३।।

प्रिय मित्रो ! मिलके रहो, सुखदुख को मिलके सहो ।

कहे तुकड्या जग हो स्वर्ग ।

वह ध्येय   पा   लिये   जा ।।४।।

61. घर-घर में जन पहिने खादी

( तर्ज : रामभजन बिन को सुख...)

घर - घर में जन पहिने खादी,

सह - उद्योग    करे   देहाती ,

तभी देश   का   निभेगा ।।टेक।।

यंत्र बढ़ें जन बेकार, यह नही है देश-सुधार । 

सबको काम मुख में राम,

तभी देश का निभेगा ।।१।।

बापू ने उपदेश दिया, खुद करके बात किया ।

अनुभव हाथ चिन्तन साथ,

तभी देश का निभेगा ।।२।।

ग्रामोद्योग जीवनज्योत,श्रमका मूल्य भाग्यस्रोत ।

कहे तुकड्या कार्य करो

तभी देश का निभेगा ।।३।।

62.यह खादी बेकाम, आजकी

         (तर्ज: तू माझा यजमान रामा ! ..... )

यह खादी बेकाम, आजकी यह खादी बेकाम ।।टेक।।

खादी पहनों चुनो चोर को, खींचो काले  दाम ।।१।। 

खादी पहनो शराब पीकर, करो देश बदनाम ।।२।।

खादी पहनों गुटबंदी कर, लूटो  देश   तमाम ।।३।।

वह खादी चाहते थे गांधी,जिसमें भरा हो राम।।४।।


खद्दर थी गरिबों की रोटी, नहि था ऐश - हराम ।।५।।

खद्दर थी समता की आँधी,श्रम-गोरव,सुख-धाम।।६।।

खद्दर थी संयम की ज्योति, स्वयंपूर्ण   हो   ग्राम ।।७।।

हो सहकार,भलाई सब की,यह था मन्त्र कलाम!।।८।।

तुकड्यादास कहे   नेताओ, छोडी   झूठे  कामा ।।९


63.हे प्रिय बच्चो ! गांधीजी ने तुम्हे

        (तर्ज : दीनदयाधन करुणा सागर...)

हे प्रिय बच्चो ! गाधीजी ने तुम्हें तभी बतलाया ।

बदलो शिक्षण की माया ।।टेक।।

कागज लिख-लिख पढते सारे,काम जरा नहि करते ।

नाजुक बनकर क्या सुख पावे? झूठ  बढाते   छाया ।।

बदलो शिक्षण की माया ।।१।।

जो उठता सो नौकरी माँगे, सब साहब - बननेकी ।

मालसियोंसे क्या सुधरेगी,इस भारत की काया ?।।

बदलो शिक्षण की माया ।।२।।

खेती -किसानी, करघा-चरखा, गौएँ मस्त बनेंगी ।

तब तो लाज बचेगी अपनी, सबको था बतलाया ।।

बदलो शिक्षण की माया ।।३।।

जाति-पाँति ही  पूछ-पूछकर नीच - ऊँचता  मानी ।

देश गया मिट्टी में इससे, तुकड्यादास सुनाया ।।

बदलो शिक्षण की माया ।।४।।


64.गांधी ! तेरी सही अहिंसा

        (तर्ज : भजले सद्गुरू नाम निर्तर.....)

गांधी ! तेरी सही अहिंसा, लड़ना ही सिखलाती थी ।कायर बनके मरना अच्छा कभी नहीं कहवाती थी ।।टेक।।

शूर सिपाही बनो,अगर बनता तो खुद बलिदान करो ।

नहि बनता तो लडो भले, पर कायर-सी मत बात करो ।।१।।

मतलब इसका यही निकलता,झूठ-असत्य न सहन करे ।

जैसा हो पग आगे धरो,पर सत्य-विजय की रहन करो ।।२।।

गुण्डागर्दी भारत में गर किसीकी भी हो  जाती  है ।

तब तो लड़ना महापुण्य है, वहाँ न जाती -पाँती है ।।३।।

अपना हो या कोई पराया, देश   नष्ट   करवाता है ।

तब तो अपना फर्ज समझकर,लडना पुण्य कहाता है ।। ४।।

अपने कुल का गुरु,पिता या नेता भी जब गेर रहा ।

तुकड्यादास कहे गीताने,लडनाभी सत्कर्म कहा ।।५।।

 

65.प्रीया गांधी बिना यह बगीचा सुना

   (तर्ज :श्यामसुन्दर की मीठी... )

प्रीय गांधी बिना  यह  बगीचा  सुना ।

गांधी रहते तो फिरभी यह देते बना ।।टेक।।

आज सारा ही अंधेर   दिखने  लगा ।

अरबों -खरबों लगाओ न तो भी तगा ।।

स्वारथीयों का भारत में   थाना  बना ।।१।।

जो मनीषा थी पहले, खतम ही रही ।

दारु पीने की भी अब   प्रतिष्ठा  हुई ।।

लाच-लुचपत का मौसम बढावे गुन्हा ।।२।।

गांधी होते तो फिरभी  बदलते   इसे ।

लोग क्या, मन्त्रि भी मानते हर उसे ।।

दुखी जनता कहे- गांधी ! आओ पुनः ।।३।।

क्यों न गांधी के चाहक हि गांधी बनें ?

वक्तकों देखके मार्ग क्यों ना चुने? ?

कहता तुकड़्या करो सत्यकी साधना।।४।।

 66.गांधी - गांधी कहनेवालो !

         (तर्ज: हरिका नाम सुमर नर...)

गांधी -गांधी कहनेवालो ! गांधी का कुछ कार्य करो ।

जाओ उन गरिबों के घर,और उनका कुछ सहकार्य करो ।।टेक।।


गांधी - जन्मशताब्दी   सारे  भारत  में   संचार  करे ।

सच्चा ही व्यवहार करे और सत्यविचार-प्रचार करे ।।१।।

मानवता खो बैठा भारत, उसको होशमें लाना है ।

सदाचार और सद्विचार का मंत्र उसे सिखलाना है ।।२।।

जो जिसका हो कार्य उसे सच-सच ही कर दिखलाना है ।

भ्रष्टाचार, मिलावट, घुस को अब तोभी हटवाना है ।। ३।।

ठोकर खाकर भी नहिं सुधरे, तो आगे मर जाना हैं ।

पंचतत्वकी सिटी बजी फिर किसका कहाँ ठिकाना है? ।।४।। 

तुकड्यादास कहे जग सुधरे,तुमभी तो कुछ ख्याल करो ।

अन्त करो इस पक्ष -भेद का, भाईसम बर्ताव करो ।।५।।


67.आओ मेरे मित्रो ! तुम्हे गांधीने पुकारा

       (तर्ज ; आजा मेरे बरबाद... )

आओ मेरे मित्रो ! तुम्हे गांधीने पुकारा ।

लेटे हुए जमुनासे  देते   हैं   इशारा ।।टेक।।

आपसभें लडो मत,अरे हिंदू- मुसलमानों !

लडनेसे रहा कौन ? दोनोंका बुरा जानो ।

क्यों फिरसे बुलाते हो फिरंगीको दुबारा ?

लेटे हुए जमुनासे 0।।१।।

नेकीसे चलो तो, सभी दुनिया है तुम्हारी ।

मस्ती करोगे तो  ना  सम्हलेगी  बिमारी ।।

बुरा नतीजा आयगा, कुछ मानो हमारा !

लेटे हुए जमुनासे 0।।२।।

अमिरोंने अपने देशको अब जान दे देना ।

गरिबोंने पिछेकी सभी बातें  भुला   देना ।।

बिगड़ी घड़ी है देशकी,मिलकर दो सहारा ।

लेटे हुए जमुनासे 0।।३।।

ऐ देशके  बासिंदो ! प्रभुको   ना  भूलना ।

रक्षा करेगा वह,करो मिलकरके प्रार्थना ।

मानवधरमकी चालसे चल कर लो गुजारा ।

लेटे हुए जमनासे 0।।४।।

करता है जो मगरूरी, मैं देख  रहा  हूँ ।

अब तो खुदाकी ओरसे, मैं नेक रहा हूँ ।।

शेजूँगा में दूतोंको, देने कब्र- किनारा ।

लेटे हुए जमुनासे 0।।५।।

मेरी रही बातोंको, मेरे   प्यारे ! निभाना ।

भारत मेरा आजाद और आबाद बनाना ।।

तुकड्या कहे, दरदरमें हो नारा यह हमारा ।

लेटे हुए जमुनासे 0।।६।।

 68.बापू ! तेरी जन्म - शताब्दी

   (तर्ज : भजले सद्गुरु नाम निरंतर..(

बापू ! तेरी जन्म -शताब्दी

प्रेरक हो इस भारत को ।

नाना धर्म - पंथ हों चाहें, प्रेम मिले सबके मत को ।।टेक ।।

मानवको ऊँची चोटीपर चढने का स्वातंत्रय मिले ।

सत्य-अहिंसा मंत्र मिले,अविरोध जीवन का तंत्र मिले ।।१।।

साधनशुध्दि और सत्याग्रह, स्वदेश -प्रीती फुले-फले ।

श्रमनिष्ठा, समुदाय -प्रार्थना,व्यसनमुक्ति की गुँज चले ।।२।।

एक सुखी और एक दुखी, यह दोष देशका दूर भगे ।

क्यों मानव में ऊँच-नीचता ? समता-सद्गुण सदा जगे ।।३।।

सुसंस्कार आबालवृध्द में, भ्रष्टाचार न कहीं रहे ।

माता हो आदर्श, सुरक्षित गौएँ, सुखका स्रोत बहे ।।४ ।।

धीरवीर निर्भय हों सारे, एकात्मकता सदा खिले । 

आत्मोन्नतिका,राष्ट्रशक्तिका,विश्वशान्तिका मार्ग खुछे ।।५।।

घर-घर जाकर सजन, जनता जागृत करने बात करे । 

सब संसार स्वर्ग हो, सबको सबही मिलकर साथ करे ।।६।।

तुकडयादास कहे गांधीजी सदा यही निजध्यास करे ।

रामनाम का मंत्र रटे और कुटियामे ही  बास  करे ।।७।।

 

 69.अमर है तेरा नाम बापू !

               (तर्ज : अब तो आँखें खोल...)

अमर है तेरा नाम बापू ! अमर है तेरा नाम ।।टेक।।

तू निर्भय सत्यका पुजारी,थी बलवान अहिंसा तेरी । 

कायरता तुझमें नहीं पनपी,- गाता विश्व   तमाम ।।

बापू ! अमर है तेरा  नाम ।।१।।

मानवताकी नींव उठाई,धर्म -समन्वय राह बताई ।

विश्वकुटूब बनाने अपना, किया जगतमें काम ।।

बापू ! अमर है तेरा नाम ! ।।२।।

तूने जो कुछ मार्ग बताया,बल्कि खुदसे कर दिखलाया।

उसकी ओर चलेगा भारत, तब पावे आराम ।।

बापू ! अमर है तेरा  नाम ।।३।।

ऐसा दीप प्रकट जहाँ होता,था न पता ऐसा बुझ पाता ।

तुकड्यादास   कहे   धीरज   दे, आगे   बढ़ने   काम ।।

बापू ! अमर है तेरा  नाम ।।४।।

 

70.गांधी के विरोधीयो आगे जरा आओ

गांधी के विरोधिओ !आगे जरा आओ।

कुछ करके दिखाओ और जनताको सुखाओं ॥टेक॥

गांधीने अपना खून भी सच काम में खींचा ।

घर- घर में सत्य नीति का चित्रही खीचा

अब तो नहि रहे वह,तुम करके दिखाओ ॥1

जीवन में जिसने कुछभी लायी है भलाई ।

जनताको अपने ढंगसे  सुभीता है दिलायीं ।

एहसांन मान उसके यह बाग सीचाओ ॥2

गांधी तो कहा करते थे " राम प्रिय है !

सच काम प्रिय है, ना आराम प्रिय है।

तुमभी तो कहीं बीगडों को राह बताओं ॥3

गांधीने सिखाया जा, हमने नहीं माना।

करके तो आज दिखता है कैसा जगाना।

कहता है दास तुकड्या,निंदाही ना गाओ ॥4

 

 

   

 

 

 

 


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